Aalochna Ke Shilalekh

$5$8

Author: DHANANJAY VERMA
Pages: 400
Language: HINDI
Year: 2014
Binding: Both

Clear
View cart

Description

प्रो. धनंजय वर्मा हिंदी-आलोचना का एक विद्रोही चेहरा है। उनमें हिंदी भाषी समाज-साहित्य-परंपरा और चिंतन की लोक-संवेदना रूपांतरित होती है। वे सीमित अर्थों में आलोचक नहीं हैं, उनकी आलोचना का संदर्भ-क्षेत्र बहुत व्यापक है। उन्होंने निराला जी के सृजन-चिंतन पर प्रथम बार हिंदी आलोचना में एक नया पाठ-विमर्श प्रस्तुत किया है। मैं लंबे समय से मानता रहा हूँ कि वे हिंदी में मानववादी मूल्यों, लोकतांत्रिक चिंतन-परंपराओं की व्यापक स्वीकृति के लिए सतत संघर्षशील आलोचक रहे हैं। आजादी के बाद के हिंदी समाज और राजनीति की जनपक्षधर शक्तियों को उन्होंने अपनी वैचारिकता और धारदार प्रतिभा से निरंतर मजबूत किया है। वे देश में समतावादी समाज का सपना सँजोए पूँजीवादी-साम्राज्यवादी, सामंतवादी शक्तियों से डटकर मुठभेड़ जारी रखनेवाले चिंतक रहे हैं। हिंदी आलोचना का यह सौभाग्य रहा है कि प्रो. धनंजय वर्मा ने लोक, शास्त्र, धर्म, परंपरा, इतिहास, संस्कृति के मानवीय मूल्यों पर जोर देनेवाली विरासत का नया भाष्य किया है। उन्होंने परंपरा, आधुनिकता और समाजवाद के बौद्धिक प्रयत्नों का मूल्यांकन करनेवाली सैद्धांतिकी को आगे बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की है।

प्रस्तुत संग्रह में प्रो. धनंजय वर्मा के गत दो-तीन दशकों में लिखे गए। लेखों-भाषणों-व्याख्यानों एवं वाचिक टिप्पणियाँ शामिल हैं। फासीवाद, समाजवाद, सांप्रदायिकता, कृति के मूल्यांकन, भाषा और संस्कृति के ज्वलंत सवालों पर धनंजय वर्मा के विचार हिंदी समाज की जड़ता को तोड़ने में अग्रणी रहे हैं। मुझे विश्वास है कि इस पुस्तक का बौद्धिक साहित्यिक पाठक समाज में खुले मन से स्वागत होगा।

Additional information

Weight 500 g
Dimensions 13,8 × 21,7 × 2,3 cm
Book Binding

Hard Cover, Paper Back

Reviews

There are no reviews yet.


Be the first to review “Aalochna Ke Shilalekh”