Bhartiya Kaladristi (HB)
₹250
ISBN: 978-81-7309-4
Pages: 191
Edition: First
Language: Hindi
Year: 2010
Binding: Hard Bound
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Description
किसी भी देश में कला उसकी संस्कृति का अभिन्न अंक होती है, भारत जैसे देश में तो खासतौर पर । संस्कृति को परंपरा की निरंतरता में ही समझा जा सकता है, और इस निरंतरता में सभ्यता के विकासक्रम को देखना बहुत जरूरी है। सभ्यता के विकास में ही संस्कृति का विकास अंतर्निहित है जिसके अंतर्गत कला विकसित और क्रमशः समृद्ध होती चलती है। कला के अंतर्गत साहित्य संगीत, चित्रकला, मूर्तिकला, हस्तशिल्प और स्थापत्य कला-सभी आ जाते हैं और सबमें परंपरा का विकास परिलक्षित होता है। इन कथाओं को सहेजने वाले अनन्य कलाप्रेमी राय कृष्णदास की स्मृति में अज्ञेय ने ‘राय कृष्णदास व्याख्यान-माला’ की श्रृंखला शुरू की। थी जिसे विभिन्न शहरों में आयोजित किया गया था और इसमें विशेषज्ञ विद्वानों ने हिस्सा लिया था। उन व्याख्यानों के संकलन से यह एक अत्यंत उपयोगी और अनुठी पुस्तक तैयार हो गई है जिसमें राय कृष्णदास और कुमारस्वामी जैसे जुनूनी और ज्ञानी कलाप्रेमी का परिचय तो मिलता ही है, इसके अलावा सभ्यता का विकास, भाषा साहित्य, संगीत और विभिन्न कलाओं को एक साथ देखने और समझने की दृष्टि और दृष्टिकोण भी हमें मिलता है। इनमें शामिल लेखकों की विद्वता और लोकप्रियता स्वयंसिद्ध है जिसके बारे में प्रकाशक को अलग से कुछ कहने की आवश्यकता नहीं जान पड़ती। इसके अलावा कृष्णदत्त पालीवाल द्वारा लिखी पुस्तक की भूमिका भी अत्यंत उपयोगी और ज्ञानवर्धक है। इस पुस्तक को। पाठक आम पुस्तकों से बिल्कुल अलग और ज्ञानोपयोगी पाएँगे, ऐसा हमारा विश्वास है।
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