Bhartiya Parampra Ki Khoj
$3 – $7
Pages: 299
Edition: First
Language: Hindi
Year: 2011
Binding: Paper Back
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Description
भारतीय सभ्यता और संस्कृति पर अनेक विदेशी एवं भारतीय विद्वानों ने विचार किया है, परंतु भगवान सिंह की यह पुस्तक उन सबसे अलग है। भगवान सिंह भारतीय वाङ्मय के मर्मज्ञ और बहुज्ञ हैं, साथ ही पूर्वाग्रह से मुक्त भी। यही कारण है कि उनका चिंतन वस्तुनिष्ठ और बहुरेखीय है। वे लोक और वेद को आमने-सामने खड़ा कर पंचायती निर्णय देने से बचते हैं बल्कि दोनों की पूरकता को सामने लाते हैं।
भारतीय परंपरा की खोज के क्रम में वे वैदिक काल से भी पीछे जाते हुए इस बात की घोषणा करते हैं कि ‘भारतीय सभ्यता विश्व मानवों की साझी संपदा है और विश्व सभ्यता का मूल… भारतीय भू-भाग है। भगवान सिंह ने यहाँ देव और दानव संस्कृति की ऐतिहासिक, समाजशास्त्रीय एवं नृशास्त्रीय मूल्यांकन प्रस्तुत किया है। जो एक नई बहस की माँग करता है। यह पुस्तक भारतीय संस्कृति के कई प्रच्छन्न तत्त्वों को उद्घाटित करती हुई ज्ञान की नई दिशा सुझाती है।
Additional information
Weight | 300 g |
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Dimensions | 13,7 × 21,1 × 1,10 cm |
Book Binding | Hard Cover, Paper Back |
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