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मुझे प्रसन्नता है कि विद्वान मित्र डॉ. विमलेश कांति वर्मा तथा सुनंदा वी. अस्थाना के सम्मिलित प्रयास से हिंदी में एक ऐसा कोश सामने आ रहा है जैसा पहले उपलब्ध न था। इस कोश के आने से एक नया क्षितिज खुलेगा और हम नए चिंतन की ओर प्रवृत्त हो सकेंगे। हिंदी में व्यावहारिक ज्ञान से संपन्न कोशों का अभाव लंबे समय से महसूस किया जा रहा है। भारी श्रम-तप के कारण कोई इस क्षेत्र में आना ही नहीं चाहता। ऐसे कठिन समय में इन दो विद्वानों ने मनोयोगपूर्वक जुटकर कोश बनाने का जो हौसला दिखाया है वह हर तरह से सराहनीय है।
हम पाते हैं कि ज्यादातर कोश अंग्रेजी में हैं। अंग्रेजी में होने के कारण अंग्रेजी न जानने वाले छात्रों के लिए उनका उपयोग करना बहुत कठिन है। इस कठिनाई को दूर करने के लिए भी इन विद्वानों ने संकल्पबद्ध होकर अपना कदम आगे बढ़ाया है। मैं मानता हूँ कि हिंदी-अंग्रेजी शब्दकोश’ जनसाधारण के साथ प्रबुद्ध पाठकों-जिज्ञासु विद्यार्थियों की चिर-प्रतीक्षित आवश्यकता को पूरा करेगा। विदेशों में हिंदी पढ़ने-पढ़ाने वाले विद्यार्थियों-अध्यापकों के लिए तो यह कोश प्रकाश-स्तंभ का काम करेगा।
आज यह लगभग सभी ने स्वीकार कर लिया है कि भाषा ही संस्कृति है, परंपरा है, स्मृति है, इतिहास है, धरोहर या रिक्थ है। भाषा में ही मानव-अस्मिता निवास करती है और भाषा में ही हमारे पुरखे बोलते मिलते हैं। नई खोजों से पता चला है कि भाषा में ही आदिम-अवचेतन, सामूहिक अवचेतन सृजन-क्षणों में बोलता मिलता है और भाषा में ही जातीय-आद्य-बिंब सक्रिय होकर उभरते हैं। इस दृष्टि से भाषा सीखना संस्कृति से सीधा संवाद है। जैसे-जैसे सभ्यता जटिल होती जाती है, भाव-बोध जटिल हो जाता है और भाषा में यह जटिलता बढ़ जाती है। भाषा की जटिलताओं को छात्रों को समझाना अध्यापक का बड़ा दायित्व है। इस कार्य के लिए भाषा का वैज्ञानिक, सुसंबद्ध आंतरिक ज्ञान अपेक्षित है। यह ज्ञान न होने पर भाषा के संश्लिष्ट जटिल चरित्र को हिंदी सीखने वाला समझ नहीं पाता और लगभग नई-नई समस्याओं से घिरा रहता है।
इस कोश का दायरा बहुत व्यापक है। इसमें प्रकृति, प्रकृति के जीव-जंतु-फल-वनस्पति-जगत, मानव-शरीर, हमारा घर, खाना, धर्म, परिवार, रीति-रिवाज, फैशन, पर्व-त्योहार, यातायात के साधन, खेलकूद जगत, व्यवसाय, कला-कर्म, राजनीति, देश, भारत के शासक, प्रसिद्ध भारतीय, भाषा-साहित्य, गणित के अंक, समय, नाप-जोख, रूपाकार, रंग, मिथक, शब्द-युग्म, भाषा की शब्दावली, भारतीय राजनीतिक दल के साथ हिंदी में शब्द-निर्मित करने की शक्ति, भाषा का परिचय, हिंदी-साहित्य की रूपरेखा जैसे सभी पक्षों पर गंभीरतापूर्वक सामग्री दी गई है। इस कोश की व्यापकता और गहराई को देखकर मुझे भरोसा है कि देश-विदेश में हिंदी सीखनेवाले, सिखानेवाले अध्यापक इससे पूरी मदद प्राप्त कर सकेंगे।
इसी विश्वास के साथ मैं दोनों विद्वान कोशकार डॉ. विमलेश कांति वर्मा तथा सुनंदा बी. अस्थाना के प्रति अपनी हार्दिक कृतज्ञता व्यक्त करते हुए यह महत्त्वपूर्ण कार्य अध्येता समाज को सौंपता हूँ। आशा है कि इसका व्यापक स्वागत होगा।
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