Mahabharat Katha by C.Rajagopalachari (PB)

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ISBN: 978-81-7309-1
Author: CHAKRAVARTI RAJGOPALACHARYA
Publisher: Sasta Sahitya Mandal Prakashan
Pages: 376
Edition: 2024
Language: Hindi
Year: 2006
Cover: Paperback
Other Details 21.5 cm X 14 cm
Weight 390 gm

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Book Description

प्रकाशकीय

हिन्दी के पाठक प्रस्तुत पुस्तक के विद्वान लेखक से भली– भांति परिचित हैं। उन्होंने जहां हमारी आजादी की लड़ाई में अपनी महान देन दी है, वहां अपनी। शक्तिशाली लेखनी तथा प्रभावशाली लेखन-शैली से साहित्य की भी उल्लेखनीय सेवा की है। ‘मण्डल’ से प्रकाशित उनकी ‘दशरथनंदन श्रीराम’, ‘राजाजी की लघु कथाएं’, ‘कुना सुन्दरी’ तथा ‘शिशु-पालन’ आदि का हिन्दी जगत में बड़ा अच्छा स्वागत हुआ है।

इस पुस्तक में राजाजी ने कथाओं के माध्यम से महाभारत का परिचय कराया है । उनके वर्णन इतने रोचक और सजीव-हैं कि एक बार हाथ में उठा लेने पर पूरी पुस्तक समाप्त किए बिना पाठकों को संतोष नहीं होता। सबसे बड़ी बात यह है कि ये कथाएं केवल मनोरंजन के लिए नहीं कही गई हैं, उनके पीछे कल्याणकारी हेतु है और वह यह कि महाभारत में जो हुआ, उससे हम शिक्षा ग्रहण करें।

इस पुस्तक का अनुवाद भी अपनी विशेषता रखता है। उसके पढ़ने में मूल का– सा रस मिलता है। भारत सरकार की ओर से उस पर दो हजार रुपये का पुरस्कार प्रदान किया गया था।

प्रस्तुत पुस्तक का यह नया संस्करण है। पुस्तक की उपयोगिता को देखते हुए विचार किया गया है कि इसका व्यापक रूप से प्रचार-प्रसार होना चाहिए। यही कारण है कि कागज, छपाई के मूल्य में असाधारण वृद्धि हो जाने पर भी इस संस्करण का मूल्य हमने कम-से-कम रखा है। हमें पूर्ण विश्वास है कि यह पुस्तक सभी क्षेत्रों और सभी वर्गो में चाव से पढ़ी जायेगी।

दो शब्द

मैं समझता हूं कि अपने जीवन में मुझसे जो सबसे बड़ी सेवा बन सकी है, वह है महाभारत को तमिल- भाषियों के लिए कथाओं के रूप में लिख देना । मुझे इस बात की प्रसन्नता है कि ‘सस्ता साहित्य मंडल’ ने ‘दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार-सभा’ के एक दक्षिण भारतीय द्वारा किये हुए हिन्दी रूपान्तर को बढ़िया मानकर उत्तर भारत के पाठकों के समझ उपस्थित करने के लिए स्वीकार कर लिया।

हमारे देश में कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं होगा, जो महाभारत और रामायण से परिचित न हो, लेकिन ऐसे बहुत थोड़े लोग होंगे, जिन्होंने कथावाचकों और भाष्यकारों की नवीन कल्पनाओं से अछूते रहकर उनका अध्ययन किया हो। इसका कारण संभवत: यह हो कि ये नई कल्पनाएं बड़ी रोचक हों। पर महामुनि व्यास की रचना में जो गांभीर्य और अर्थ-गढ़ता है, उसे उपस्थित करना और किसी के लिए संभव नहीं । यदि लोग व्यास के महाभारत को, जिसकी गणना हमारे देश के प्राचीन महाकाव्यों में की जाती है और जो अपने ढंग का अनूठा ग्रंथ है, अच्छे वाचकों से सुनकर उसका मनन करें तो मेरा विश्वास है कि वे ज्ञान, क्षमता और आत्म-शक्ति प्राप्त करेंगे। महाभारत से बढ़कर और कहीं भी इस बात की शिक्षा नहीं मिल सकती कि जीवन में विरोध- भाव, विद्वेष और क्रोध से सफलता प्राप्त नहीं होती। प्राचीन काल में बच्चों को पुराणों की कहानियां दादियां सुनाया करती थीं, लेकिन अब तो बेटे-पोतेवाली महिलाओं को भी ये कहानियांज्ञात नहीं हैं। इसलिए अगर इन कहानियों को पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया जाये तो उससे भारतीय परिवारों को लाभ ही होगा।

महाभारत की इन कथाओं को केवल एक बार पढ़ लेने से काम नहीं चलेगा। इन्हें बार-बार पढ़ना चाहिए। गांवों में बे-पढे-लिखे स्त्री-पुरुषों को इकट्ठा करके दीपक के उजाले में इन्हें पढ़कर सुनाना चाहिए। ऐसा करने से देश में ज्ञान, प्रेम और धर्म-भावनाओं का प्रसार होगा, सबका भला होगा।मेरा विश्वास है कि महाभारत की ये संक्षिप्त कथाएं पाठकों को पहले की अपेक्षा अच्छा आदमी, अच्छा चिन्तक और अच्छा हिन्दू बनावेंगी।

प्रश्न हो सकता है कि पुस्तक में चित्र क्यों नहीं दिए गए? इसका कारण है। मेरी धारणा है कि हमारे चित्रकारों के चित्र सुन्दर होने पर भी यथार्थ और कल्पना के बीच जो सामंजस्य होना चाहिए वह स्थापित नहीं कर पाते। भीम को साधारण पहलवान, अर्जुन को नट और कृष्ण को छोटी लड़की की तरह चित्रित करके दिखाना ठीक नहीं है। पात्रों के रूप की कल्पना पाठकों की भावना पर छोड़ देना ही अच्छा है।

विषय-सूची
1 गणेशजी की शर्त 9
2 देवव्रत 12
3 भीष्म-प्रतिज्ञा 15
4 अम्बा और भीष्म 18
5 कच और देवयानी 23
6 देवयानी का विवाह 28
7 ययाति 33
8 विदुर 35
9 कुन्ती 38
10 पाण्डु का देहावसान 40
11 भीम 42
12 कर्ण 44
13 द्रोणाचार्य 47
14 लाख का घर 51
15 पांडवों की रक्षा 54
16 बकासुर-वध 59
17 द्रौपदी स्वयंवर 66
18 इन्द्रप्रस्थ 71
19 सारंग के बच्चे 77
20 जरासंध 80
21 जरासंध वध 83
22 अग्र-पूजा 87
23 शकुनि का प्रवेश 90
24 खेलने के लिए बुलावा 93
25 बाजी 97
26 द्रौपदी की व्यथा 101
27 धृतराष्ट्र की चिन्ता 106
28 श्रीकृष्ण की प्रतिज्ञा 111
29 पाशुपत 114
30 विपदा किस पर नहीं पड़ती? 118
31 अगस्त्य मुनि 122
32 ऋष्यशृंग 126
33 यवक्रीत की तपस्या 131
34 यवक्रीत की मृत्यु 133
35 विद्या और विनय 136
36 अष्टावक्र 138
37 भीम और हनुमान 141
38 ‘मैं बगुला नहीं हूं’ 146
39 द्वेष करनेवाले का जी कभी नहीं भरता 149
40 दुर्योधन अपमानित होता है 152
41 कृष्ण की भूख 155
42 मायावी सरोवर 159
43 यक्ष-प्रश्न 162
44 अनुचर का काम 166
45 अज्ञातवास 171
46 विराट की रक्षा 176
47 राजकुमार उत्तर 181
48 प्रतिज्ञा-पूर्ति 184
49 विराट का भ्रम 189
50 मंत्रणा 193
51 पार्थ-सारथी 199
52 मामा विपक्ष में 201
53 देवराज की भूल 203
54 नहुष 206
55 राजदूत संजय 211
56 सुई की नोंक जितनी भूमि भी नहीं 215
57 शांतिदूत श्रीकृष्ण 218
58 ममता एवं कर्त्तव्य 224
59 पांडवों ओर कौरवों के सेनापति 226
60 बलराम 229
61 रुक्मिणी 230
62 असहयोग 233
63 गीता की उत्पत्ति 236
64 आशीर्वाद-प्राप्ति 238
65 पहला दिन 241
66 दूसरा दिन 243
67 तीसरा दिन 246
68 चौथा दिन 250
69 पांचवां दिन 255
70 छठा दिन 256
71 सातवां दिन 259
72 आठवां दिन 263
73 नवां दिन 265
74 भीष्म का अंत 268
75 पितामह और कर्ण 270
76 सेनापति द्रोण 272
77 दुर्योधन का कुचक्र 274
78 बारहवां दिन 277
79 शूर भगदत्त 281
80 अभिमन्यु 285
81 अभिमन्यु का वध 290
82 पुत्र-शोक 293
83 सिंधु राज 297
84 अभिमंत्रित कवच 301
85 युधिष्ठिर की चिंता 305
86 युधिष्ठिर की कामना 309
87 कर्ण और भीम 311
88 कुंती को दिया वचन 315
89 भूरिश्रवा का वध 319
90 जयद्रथ-वध 323
91 आचार्य द्रोण का अंत 326
92 कर्ण भी मारा गया 329
93 दुर्योधन का अंत 333
94 पांडवों का शर्मिन्दा होना अश्वत्थामा 337
95 अब विलाप करने से क्या लाभ 341
96 सांत्वना कौन दे? 344
97 युधिष्ठिर की वेदना 346
98 शोक और सांत्वना 349
99 ईर्ष्या 352
100 उत्तक मुनि 354
101 सेर भर आटा 357
102 पांडवों का धृतराष्ट्र के प्रति बर्ताव 360
103 धृतराष्ट्र 366
104 तीनों वृद्धों का अवसान 369
105 श्रीकृष्ण का लीला-संवरण 370
106 धर्मपुत्र युधिष्ठिर 372

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