GITA MATA (PB)

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ISBN:  81-7309-157-9
Pages:336
Edition:Fifth
Language:Hindi
Year:2008
Binding:Paper Back

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Book Description

महात्मा गांधी के महाप्रयाण के उपरांत ‘मण्डल’ ने निश्चय किया था कि वह उनके विचारों के व्यापक प्रसार के लिए सस्ते-से-सस्ते मूल्य में ‘गांधी-साहित्य’ का विधिवत प्रकाशन करेगा। इसी निश्चय के अनुसार उसने दस पुस्तकें प्रकाशित कीं। हमें हर्ष है कि इन पुस्तकों का सर्वत्र स्वागत हुआ। आज उनमें से अधिकांश पुस्तकें अप्राप्य हैं।

इस पुस्तक-माला के एक खण्ड में हमने गीता के विषय में गांधीजी ने जो कुछ लिखा था, उसका संग्रह किया। पाठक जानते हैं कि गांधीजी ने गीता को ‘माता’ की। संज्ञा दी थी। उसके प्रति उनका असीम अनुराग और भक्ति थी। उन्होंने गीता के श्लोकों का सरल-सुबोध भाषा में तात्पर्य दिया, जो ‘गीता-बोध’ के नाम से प्रकाशित हुआ; उन्होंने सारे श्लोकों की टीका की और उसे ‘अनासक्तियोग’ का नाम दिया; कुछ भक्ति-प्रधान श्लोकों को चुनकर ‘गीता-प्रवेशिका’ पुस्तिका निकलवाई; इतने से भी उन्हें संतोष नहीं हुआ तो उन्होंने ‘गीता-पदार्थ-कोश’ तैयार करके न केवल शब्दों का सुगम अथं दिया, अपितु उन शब्दों के प्रयोग-स्थलों का निर्देश भी किया। गीता की आर उनका ध्यान क्यों और वसे आकर्षित हुआ, उन पर उसका क्या प्रभाव पड़ा, गीता के स्वाध्याय से क्या लाभ होता है, आदि-आदि बातों पर उन्होंने समय-समय पर लेख भी लिख ।। गीता के मूल पाठ के साथ वह संपूर्ण सामग्री हमने प्रस्तुत पुस्तक में संकलित कर दी।

गीता को हमारे देश में ही नहीं, सारे संसार में असामान्य लोकप्रियता प्राप्त है। असंख्य व्यक्ति गहरी भावना से उसे पढ़ते हैं और उससे प्रेरणा लेते हैं। जीवन की कोई भी ऐसी समस्या नहीं, जिसके समाधान में गीता सहायक न होती हो। उसमें ज्ञान, भक्ति तथा कर्म का अद्भुत समन्वय है और मानव-जीवन इन्हीं तीन अधिष्ठानों पर आधारित हैं।

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