प्रस्तुत पुस्तक का पहला खंड कई वर्ष पूर्व प्रकाशित हो गया था। उसमें श्रीमद्भागवत के एकादश स्कंध के अठारह अध्यायों का विवेचन आ गया था। पुरतक का आकार बढ़ जाने। के भय से शेष अध्यायों का विवेचन दूसरे खंड के लिए छोड़ देना पड़ा था।
पाठकों को पुस्तक इतनी पसंद आई कि कुछ ही समय में उसके दो संस्करण हो गये। उन्होंने मांग की कि उन्तीस से लेकर अंतिम अर्थात इकतीसवें अध्याय तक का भाग भी उन्हें । मिल जाना चाहिए। हमें खेद है कि इच्छा होते हुए भी हम जल्दी ही पाठकों की मांग की पूर्ति नहीं कर सके।
हमें हर्ष है कि अब यह दुसरा खंड पाठकों को सुलभ हो रहा है। इसमें एकादश स्कंध की शेष सामग्री की व्याख्या तो दी ही गई है, साथ ही श्रीमद्भागवत तथा श्रीकृष्ण के संबंध में कुछ बहुत ही मूल्यवान सामग्री जोड़ दी गई है और इस प्रकार इस खंड का महत्त्व और भी बढ़ गया है।
हमें आशा है कि पाठक पहले खंड की भांति इसे भी मनोयोगपूर्वक पढ़ेंगे और इसके स्वाध्याय से अपने जीवन निर्माण में लाभ लेंगे।
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