डॉ. देवराज हिंदी आलोचना का एक विशिष्ट चिंतन से भरा चेहरा है। उनमें हमारी चिंतन परंपराओं और सर्जनात्मक संवेदनाओं के ठोस रूपाकार मिलते हैं। वे न तो सीमित अर्थ में आलोचक हैं और न दार्शनिक। वे हिंदी आलोचना में मानवतावादी, लोकतांत्रिक और गहन दार्शनिक विचारों की व्यापक स्वीकृति के लिए सतत संघर्षशील विचारक हैं। भारतीय समाज, संस्कृति, इतिहास और दर्शन की लोकपक्षधर शक्तियों को उन्होंने अपनी आलोचकीय प्रतिभा, प्रखर चिंतन-दृष्टि और दार्शनिक वक्तृता से निरंतर मजबूत किया है। सामंतवादी पुनरुत्थानवादी दोगली शक्तियों से निरंतर युद्ध करनेवाले वे पोर-पोर आलोचक हैं। उन्होंने जहाँ एकाग्र भाव से लोक, धर्म, परंपरा, संस्कृति के मानवीय मूल्यों पर जोर देनेवाली विरासत की सटीक व्याख्या की है, वहीं उनको उपकरण बनाकर भेददृष्टि के खिलाफ निरंतर लोहा लिया है। उन्होंने परंपरा और आधुनिकता, प्रगति और प्रयोग के मूल्यांकन की बौद्धिक बहसों को पूरे साहस से आगे बढ़ाया है।
डॉ. देवराज मूलत: दार्शनिक मिजाज के सांस्कृतिक आलोचक हैं, पर उनकी सबसे बड़ी विशेषता यह रही है कि उन्होंने कभी भी किसी एक विचारधारा की हथकड़ियाँ पहनने से परहेज किया है। अपनी इसी उन्मुक्त शक्ति के कारण वे ‘प्रतिक्रियाएँ’ या ‘छायावाद का पतन’ जैसी पुस्तकें लिखकर हिंदी आलोचना के केंद्र में आए हैं। अपनी दार्शनिक प्रखरता से साहित्य और साहित्येत्तर अनुशासनों के बीच सहज ही अपनी अलग छाप छोड़ सके हैं। उन्होंने संकल्प के साथ साहित्य को सीमित साहित्यिक व्याख्या से बाहर निकालकर उसे सामाजिकता–दार्शनिकता के विस्तृत परिप्रेक्ष्य में देखने की प्रवृत्ति-जो प्रगतिशीलता और गतिमयता की प्रमुख पहचान है उसे व्यापक धरातल देने का काम किया है। उनका ध्यान ठेठ स्थानीय स्थिति वैश्विक परिदृश्य की ओर कम नहीं रहा है। दर्शनशास्त्र, समाजशा इतिहास, साहित्यशास्त्र जैसे अनेक अनुशासनों की नवीन स्थितियों की और लोक-चेतना के हितों के परिप्रेक्ष्य में परखने-कसने के । असावधानियों से दूर रहे हैं। भारतीय लोक में उनकी जड़ें गहरे न हैं तथा वे बोझ ढोनेवाली अक्खड़ पंडिताई से दूर रहे हैं। यही कारण है कि पोथी ढोनेवाले पंडितों की तरह सूचनाओं के लेखक नहीं हैं। वे दर्शन के को आतंक की तरह नहीं संवेदनात्मक ज्ञान के सहभागी की तरह प्रस्तत हैं। अपनी बौद्धिक प्रखरता के कारण ही उनकी संस्कृतिमूलक-आलो हिंदी आलोचना में क्लासिक का दर्जा प्राप्त कर चुकी है।
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