भजगोविन्दम स्त्रोत
प्रस्तुत पुस्तक विद्वान लेखक की अनुपम रचना है। पाठक जानते हैं कि श्री शंकराचार्य के भक्तिपरक स्तोत्रों में ‘भज गोविन्दम’ की बड़ी महिमा है। इसे ‘मोहमुद्गर’ अर्थात् सांसारिक मोह का नाश करने वाले मुद्गर की भी सार्थक संज्ञा दी जाती है। सुललित पद-विन्यास, रुचिर भक्ति और तीव्र वैराग्य-भावना से ओत-प्रोत यह स्तोत्र भारतीय साहित्य की अक्षय कृति है। वैराग्य जैसे गंभीर विषय का प्रतिपादन करने में भी श्री शंकराचार्य ने साहित्यिक सौंदर्य का पूरा निर्वाह किया है। धार्मिक अथवा आध्यात्मिक रुचि रखने वाले प्रायः सभी नर-नारी ‘भज गोविन्द्रम’ के एकाध पद्य से अवश्य परिचित पाये जाते हैं, किंतु एक-दो श्लोक जान लेना एक चीज है, सारे श्लोकों को मनन करना दूसरी चीज है।
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