कावड़ श्रवण कुमार की
देवेंद्र दीपक हिंदी साहित्य का एक विशिष्ट चिंतन से संपन्न चेहरा हैं। उनमें समाज, मिथक, साहित्य-परंपरा और नवीन संवेदना की सृजनचेतना रूपायित होती है। वे न सीमित अर्थों में नाटककार हैं-न साहित्यकार। वे हिंदी में भारतीय संस्कारी मूल्यचेतना के वाहक सर्जक हैं। स्वातंत्र्योत्तर भारतीय समाज की सांस्कृतिक-राजनीतिक चेतना की जनपक्षधर शक्तियों के साथ उनकी वैचारिकता का अटूट संबंध रहा है। यह संबंध ‘काँवर श्रवण कुमार की’ काव्य-नाटक में पूरी ध्वन्यर्थ व्यंजना के साथ मौजूद है। श्रवण कुमार की बहुवचनात्मक प्रतीक कथा को केंद्र में रखकर इस काव्य-नाटक की रचना की गई है। रचनाकार ने कथावस्तु की अंतर्योजना को धर्म, लोक, परंपरा और संस्कृति के मानवीय मूल्यों से जोड़कर नए विमर्श में प्रस्तुत किया है। इस तरह यह काव्य-नाटक हमारी मानवीय मूल्यों की विरासत पर जोर देनेवाली कलाकृति है। यह कहना चाहिए कि यहाँ मूल्य-दृष्टि से जन्मी विरासत की सटीक व्याख्या है। अपनी सृजन-संवेदना में यह कृति हमारे बौद्धिक उपकरणों को चमकाती है। सार-संक्षेप, यह कि यह कृति हमारी परंपरा और आधुनिकता की धारा को पावनताजनित विवेक से आगे बढ़ाती है। इस दृष्टि से यह कृति श्रवण कुमार का चरित्र मात्र न होकर मानव-संस्कृति का एक गौरवपूर्ण प्रकरण है। इसकी प्रकरण-वक्रता देश और काल की नवीन अनुगूंजें हैं। यह एक उपेक्षित धार्मिक कथा का उद्धार मात्र नहीं है, बल्कि पूरी कथा को एक नवीन ‘विजन’ देनेवाली कलाकृति है। काव्य के साथ नाटक का इसमें विशेष रंग है।
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