स्वातंत्र्योत्तर भारत में नारी-विमर्श का स्वर प्रबलता से सुनाई देता है। मूलतः नारी-विमर्श या फेमिनिज्म एक पाश्चात्य अवधारणा है और मर्दवाद के समकक्ष नारियों की राजनीतिक, सामाजिक समानता का आंदोलन। हिंदी में नारी-विमर्श-स्त्री-विमर्श को नारीवाद नाम से भी जाना जाता है। नारीवाद का आंदोलन संयुक्त राज्य अमेरिका तथा ग्रेट ब्रिटेन से शुरू होता है। प्रायः यह विचार व्यक्त किया जाता है कि इसके बीज-भाव अठारहवीं शताब्दी के मानवतावाद और औद्योगिक क्रांति में रहे हैं। यह पुराना रूढ़िवादी विश्वास समाज में चला आता था कि स्त्रियाँ पुरुषों की तुलना में शारीरिक और बौद्धिक रूप से कमतर होती हैं। धर्मशास्त्र ने उनकी पराधीनता की व्यवस्था का समर्थन लंबे समय तक किया। लेकिन नवजागरण-सुधार की चेतना ने नारियों को समय-समय पर सम्माननीय स्थान देने की आवाज उठाई है। नारी अधिकारों की बहाली का पहला महत्त्वपूर्ण दस्तावेज 1792 में सामने आया। फ्रांसीसी राज्यक्रांति के समय भी कहा गया कि स्वतंत्रता, समानता तथा बंधुता को बिना किसी लिंग भेद के लागू करना चाहिए। लेकिन उस समय यह आंदोलन नेपोलियनवाद की हवा में ठंडा पड़ गया। समय पाकर उत्तरी अमेरिका में नारी आंदोलन 1848 में जार्ज वाशिंगटन तथा टामस जैफरसन के दबाव में शुरू हुआ। बड़ी घटना यह घटी कि एलिजाबेथ कैंडी स्टैण्टन, लुक्रेसिया कफिनमोर और कुछ अन्य ने न्यूयार्क में महिला सम्मेलन करके नारी स्वतंत्रता पर एक घोषणापत्र जारी किया जिसमें पूर्ण कानूनी समानता, शैक्षिक एवं व्यावसायिक अवसर तथा वोट देने के अधिकार की माँग की गई।
Nari Vimash Ki Bhartiya Parampara
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Author: KRISHNA DUTT PALIWAL
ISBN: 978-81-7309-835-2
Pages: 236
Language: HINDI
Year: 2017
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