Hind Swaraj (PB)

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ISBN: 978-81-7309-3
Pages: 104
Edition: Fifth
Language: Hindi
Year: 2011
Binding: Paper Back

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Book Description

लंदन से दक्षिण अफ्रीका लौटते हुए गांधीजी ने नवम्बर 1909 में संवाद शैली में गुजराती में ‘हिन्द स्वराज’ लिखा था। दिसम्बर 1909 में ‘इंडियन ओपिनियन’ में गुजराती मूलरूप में यह पुस्तक प्रकाशित हुई थी। जनवरी 1910 में इसका पुस्तकाकार रूप प्रकाशित हुआ। मार्च 1910 में भारत की ब्रिटिश सरकार ने पुस्तक को जब्त कर लिया। गांधीजी ने बहुत शीघ्र इसका अंग्रेजी अनुवाद प्रकाशित किया। इसके जब्त होने की कोई सूचना नहीं है। वस्तुतः यह पाश्चात्य आधुनिक सभ्यता की समीक्षा है और उसको स्वीकार करने पर प्रश्नचिह्न है। ब्रिटिश संसदीय गणतंत्र की कटु आलोचना है और अन्ततः भारतीय आत्मा को स्वराज, स्वदेशी, सत्याग्रह तथा सर्वोदय की सहायता से रेखांकित करने का प्रयत्न है।

नेहरू भारतीय आत्मा का पश्चिमी ढंग से नवीकरण चाहते थे और गांधीजी उसका फिर से आविष्कार करना चाहते थे। हिन्द स्वराज’ के द्वारा गांधीजी ने हमें सावधान करना चाहा था कि उपनिवेशवादी मानसिकता या मानसिक उपनिवेशीकरण हमारे लिए कितना खतरनाक सिद्ध हो सकता है। गांधीजी पहले व्यक्ति थे जिन्होंने ‘हिन्द स्वराज’ के माध्यम से एक भविष्यद्रष्टा ऋषि की तरह पश्चिमी सभ्यता में निहित अशुभ प्रवृत्तियों के खतरनाक संभाव्य शक्ति का पर्दाफाश किया था।

‘हिन्द स्वराज’ की प्रस्तावना में गांधीजी ने तीन उद्देश्यों का उल्लेख किया है :
क. उद्देश्य देश की सेवा करना है।
ख. सत्य की खोज करना है।
ग. उसके मुताबिक बरतने का है।

‘हिन्द स्वराज’ में गांधीजी ने आध्यात्मिक नैतिकता की सहायता से हमारी अर्थनैतिक तथा सैनिक कमजोरी को शक्ति में बदल दिया। अहिंसा को हमारी सबसे बड़ी शक्ति बना दी। सत्याग्रह की सहायता से शोषितों की तरह नहीं, विद्रोही की तरह जीना सिखाया और इस तरह सत्याग्रह को अस्त्र में बदल दिया। सहनशीलता को सक्रियता में बदलने का अभूतपूर्व कार्य किया। शक्तिहीन शक्तिशाली हो गया। पाश्चात्य आधुनिकता का विरोध कर हमें अपने यथार्थ को पहचानने का रास्ता दिखाया। ग्राम को विकास के केन्द्र में लाकर वैकल्पिक टेक्नोलॉजी, स्वदेशी का प्रसार तथा सर्वोदय को महत्त्व देते हुए लोक-हिन्दुत्व (Folk Hinduism) का पक्ष लिया और भारतीयों को सशक्तिकरण का मार्ग दिखाते हुए देश के विकास का सही मॉडल से हमें परिचित कराया जिससे कि हम एक नैतिक, आर्थिक तथा आध्यात्मिक तथा शक्तिशाली स्वतंत्र भारत का निर्माण कर सकें।

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