रास्ते की तलाश
यह एक सुखद आश्चर्य है कि राजस्थानी भाषा के लेखक होते हुए भी श्री विजयदान देथा-बिज्जी (1926) की जगत व्यापी ख्याति है। राजस्थानी के साथ-साथ हिन्दी में भी वे समान रूप से पारंगत हैं। उनकी कहानियों और उपन्यासों के अंग्रेजी अनुवाद बहुत सारे विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में अन्तर्भुक्त हैं। उनकी तुलना जगत प्रसिद्ध फ्रांसिसी लेखक मिशेल तुर्निये के साथ की जाती है। ये दोनों लेखक लोक-कथाओं को आधार बनाकर आधुनिक परिप्रेक्ष्य में कहानी की रचना करते हैं और आज की चुनौतियों की व्याख्या करते हैं। इन कहानियों में ग्रामीण जीवन से जुड़े हुए सहज सरल स्त्री-पुरुषों के जीवन के सुख-दुःख, उतार-चढ़ाव को तथा गहराई से उनके अंतर्मन का विश्लेषण किया गया है, जिसे पढ़ते हुए जीवन के सारे दरवाजे हमारे सामने खुल जाते हैं और उनमें झांककर हम जीवन को समझ पाते हैं। विजयदान देथा की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वे लोककथा की आत्मा को जीवित रखते हुए कहानी या उपन्यास के माध्यम से कथानक का सृजन इस तरह करते हैं कि बुद्धिजीवी ही नहीं, आम पाठक भी उसका आनन्द उठा सकता है। ये कहानियां बिना बोझिल हुए जीवन के लिए रोचक ढंग से अनुपम शिक्षा देती हैं।
श्री विजयदान देथा ने सैकड़ों से अधिक पुस्तकें लिखी हैं। उन्हें साहित्य अकादेमी पुरस्कार के साथ-साथ राजस्थानी अकादेमी का भी पुरस्कार मिल चुका है। श्री के.के. बिड़ला फाउण्डेशन के बिहारी पुरस्कार से उन्हें विभूषित किया गया है। वे साहित्य अकादेमी के सर्वोच्च सम्मान अकादेमी फेलो से भी विभूषित हैं।
उनकी कहानियों पर मणिकौल ने ‘दुविधा’ और अमोल पालेकर ने ‘पहेली नामक फिल्में भी बनायी हैं, जो बहुत ही लोकप्रिय प्रमाणित हुई हैं। विजयदान देथा की कहानी पर आधारित अमोल पालेकर की फिल्म ‘पहेली’ में अभिताभ बच्चन और शाहरुख खान ने महत्त्वपूर्ण भूमिकाएं निभाई हैं।…
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