Sarvagin Vyaktitv Vikas (Part-1) (PB)

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ISBN: 978-81-7309-0
Pages: 142
Edition: Fifth
Language: Hindi
Year: 2012
Binding: Paper Back

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Book Description

सर्वागीण व्यक्तिव विकास 1 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

भारत के स्वतंत्र होने के बाद हमारे देश में सबसे अधिक उपेक्षा शिक्षा के क्षेत्र में हुई है। आज भी हम उस शिक्षा-प्रणाली का अनुसरण कर रहे हैं, जो नई पीढ़ी को ज्ञान तो देती है, किन्तु वह संस्कार नहीं देती, जो व्यक्तित्व के सर्वांगीण विकास के लिए आवश्यक है।

इसी को लक्ष्य में रखकर इस पुस्तक-माला की योजना बनाई गई है। इस माला की पहली पुस्तक पाठकों के हाथों में है। इसमें छः से लेकर नौ वर्ष तक के बालक-बालिकाओं के व्यक्तित्व के सम्यक् विकास के लिए आधार-भूत बातें बताई गई हैं। बालकों का आचार, स्वभाव, व्यवहार, ज्ञान, दर्शन, स्वास्थ्य तथा बौद्धिक मनीषाओं का विकास किस प्रकार हो सकता है, इसकी रूप-रेखा दी गई है। यदि शिक्षा देते समय अध्यापक-अध्यापिकाएं और घर में अभिभावक इन बातों का ध्यान रखें तो निश्चय ही बच्चों को सार्थक शिक्षा मिल सकती है।

यह पहली पुस्तक ६ से ६ वर्ष तक के बच्चों के लिए है। दूसरी पुस्तक १० वर्ष से १३ वर्ष तक और तीसरी पुस्तक १४ से १७ वर्ष के शिक्षार्थियों के लिए। दूसरी पुस्तक भी प्रकाशित हो चुकी है, तीसरी लिखी जा रही है।

इस पुस्तक के लेखक जस्टिस शिवदयालजी मुख्यतः कानून के क्षेत्र के हैं, किन्तु बच्चों की संस्कारशील शिक्षा में उनकी गहरी दिलचस्पी रही है। इस दिशा में उन्होंने गंभीर चिन्तन और मनन करके इन पुस्तकों की रचना की है। कहने की आवश्यकता नहीं कि पिलानी, ग्वालियर, इन्दौर, जहां भी इन पस्तकों का उपयोग किया गया है और किया जा रहा है, परिणाम आश्चर्यजनक निकला है।

हमें विश्वास है कि इस तथा इस माला की अन्य पुस्तकों का सभी शिक्षा-संस्थाओं में स्वागत और उपयोग होगा।

पुस्तक का व्यापक प्रसार हो, इसलिए इसका मूल्य अपेक्षाकृत कम रक्खा गया है।

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