नेहरूजी की वैसे तो सभी पुस्तकें लोकप्रिय हुई हैं, लेकिन संसार के साहित्य में विश्व इतिहास की झलक’ को विशेष ख्याति प्राप्त हुई है। इस पुस्तक में लेखक ने बड़े ही रोचक और सजीव, साथ ही, नये दृष्टिकोण से दुनिया के इतिहास की झांकी पाठकों के लिए उपस्थित की है और साम्राज्यों के उत्थान-पतन की कहानी पर बड़े सुन्दर ढंग से प्रकाश डाला है। इस पुस्तक को पढ़कर पता चलता है कि नेहरूजी एक महान राष्ट्र-नेता के साथ-साथ उच्चकोटि के साहित्य-मर्मज्ञ तथा अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के उद्भट विद्वान भी थे। प्रस्तुत पुस्तक वास्तव में उनके अंतर्राष्ट्रीय राजनीति तथा इतिहास के गहरे ज्ञान का सागर है।
बहुत दिनों से हमारी इच्छा थी कि इस बृहद् पुस्तक का एक संक्षिप्त संस्करण प्रकाशित करें, जिससे सामान्य पाठक भी इससे लाभ उठा सकें। पाठकों की भी मांग थी। हमें हर्ष है कि इस संस्करण द्वारा हमारी इच्छा और पाठकों की मांग की पूर्ति हो रही है। पुस्तक को संक्षिप्त करने में इस बात का पूरा ध्यान रखा गया है कि कोई भी प्रमुख बात छूटने न पाये और आकार कम हो जाय।
इस पुस्तक में सन् १९३९ तक की घटनाएँ हैं। उसके बाद दुनिया में बहुत-सी उथल-पुथल हुई है, छोटे-बड़े अनेक परिवर्तन हुए हैं। भारत भी इस अर्से में स्वतंत्र हो गया है। हम चाहते थे कि इस काल की खास-खास घटनाओं का समावेश इस पुस्तक में हो जाता। स्वयं लेखक भी चाहते थे, लेकिन पाठक जानते हैं कि राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय प्रवृत्तियों एवं परिस्थितियों का कितना दबाव नेहरूजी पर रहा है। और है। अतः उनके लिए असंभव था कि वह इस कार्य को पूर्ण कर देते। किसी दूसरे से कराना उचित नहीं था, क्योंकि घटनाओं को देखने की नेहरूजी की अपनी दृष्टि है और वर्णन का ढंग भी उनका अपना निराला है।
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