जापानी साधक सिनरेन के भक्तिगीत
पालि भाषा, साहित्य, दर्शन और इतिहास के विश्वप्रसिद्ध विद्वान् प्रात: स्मरणीय डॉ. भरत सिंह उपाध्याय मेरे गुरु रहे हैं। उनके चरणों में बैठकर मैंने एम.ए. के दिनों में पालि भाषा एवं साहित्य का अध्ययन किया है। उनके साथ हिंदू कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय में वर्षों रहा और एक शिष्य के रूप में स्नेह पाया। डॉ. उपाध्याय ने ‘बौद्ध दर्शन तथा अन्य भारतीय दर्शन’ विषय पर शोध कार्य किया और बुद्धकालीन भारतीय भूगोल पर बड़ा भारी प्रकांड विद्वता से भरा अनुसंधान । गौतम बुद्ध की जीवनी पंद्रह पृष्ठों की पालि भाषा में लिख डाली तथा ‘पालि साहित्य का इतिहास’ जैसा अनुपम-अपूर्व ग्रंथ की रचना की। उनकी विद्वता का सूर्य तब पूरी प्रखरता से विश्वभर में स्वर्णाभा से चमक उठा जब उन्होंने जापान में ध्यान संप्रदाय’ जैसी कृति भारतीय साहित्य को दी। इस कार्य के पश्चात् ‘ध्यान और नाम’, ‘बोधि वृक्ष की छाया में’, ‘बुद्ध और बौद्धसाधक’, ‘थेरी गाथाएँ’, ‘बौद्ध धर्म में भक्तियोग का विकास’ तथा ‘बुद्ध के व्यक्तित्व का लोकोत्तर रूप’ जैसी ध्यान आकृष्ट करनेवाली पुस्तकों का प्रणयन किया। जापान के बौद्ध चिंतक शिनरेन् के भक्ति गीत’ उनकी इसी चिंतन-परंपरा की आंतरिक आस्था का सुविचारित परिणाम है। आज इनका महान ग्रंथ ‘महाबुद्धवत्थु’ छह खंडों में उपलब्ध विश्वज्ञान को बेहद कीमती धरोहर है। डॉ. उपाध्याय का चिंतन आज एक ऐसा खजाना है कि उससे पीढ़ियाँ लाभान्वित होती रहेंगी।
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