उडिया कहानी-साहित्य की परम्परा में मनोज दास एक स्वतन्त्र स्थान के अधिकारी हैं। फकीरमोहन सेनापति से लेकर सुरेन्द्र महान्ति तक के कहानीकारों ने उड़िया कथा-साहित्य को ऐसा सम्पन्न बनाया कि भारतीय कथा-साहित्य में उड़िया कहानी अक्सर शिखर स्पर्श करती पायी जाती है। चाहे वह फकीरमोहन की अप्राप्य कहानी ‘लछमनिया’ हो चाहे ‘रेवती’, समग्र भारतीय साहित्य में अपना वैशिष्ट्य रखती हैं। आगे चलकर गोदावरीश मिश्र, गोदावरीश महापात्र, कालिन्दी चरण पाणिग्राही, अनन्त प्रसाद पण्डा, भगवती चरण पाणिग्राही, नित्यानन्द महापात्र, कान्हुचरण महान्ति, वसन्त कुमार शतपथी, राजकिशोर राय, गोपीनाथ महान्ति, सच्चिदानन्द राउतराय, वामाचरण मित्र, किशोरीचरण दास, महापात्र नीलमणि साहु, शान्तनुकुमार आचार्य, चन्द्रशेखर रथ, सुरेन्द्र महान्ति जैसे सरीखे कहानीकारों ने उड़िया कहानी को विषय एवं शिल्प दोनों दृष्टियों से समुन्नत बनाया है। किसी ने मार्क्सवादी दृष्टि से जीवन को देखा, परखा तो किसी ने गान्धीवादी तरीके से; किसी ने सामाजिक विसंगतियों को उभारा तो किसी ने सांस्कृतिक अवक्षय पर चोट की। सुरेन्द्र महान्ति ने इतिहास और पुराणों से मिथकीय दृष्टि लेकर वर्तमान को वाणी देने की कोशिश की।
ऐसे ही समय में मनोज दास उड़िया जन-जीवन की किम्वदन्तियों, लोककथाओं एवं ऐतिहासिक घटनाओं का आधार लेकर साम्प्रतिक गुत्थियों को सुलझाते। हुए एक नये दिगन्त का उन्मोचन करते हैं। गतानुगतिकता से भिन्न मनोज दास की भाषा एवं शैली पाठकों को एक स्वतन्त्र स्वाद का अनुभव देती है। सम्पूर्ण अनालोचित प्रसंगों को लेकर वे ऐसी अभिनव परिकल्पना करते हैं कि न केवल उड़िया में। बल्कि हिन्दी, अंग्रेजी आदि विभिन्न भाषाओं में अनूदित होकर उनकी कहानियाँ अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी लोकप्रियता प्राप्त करती हैं। उड़ीसा साहित्य अकादमी से लेकर भारत के सर्वश्रेष्ठ ‘सरस्वती सम्मान’ तक प्राप्त कर आपने अपनी बलिष्ठ कथा-सृष्टि का परिचय दिया है।
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