कैसे-कैसे भ्रम
वियोगी हरि
मूल्य: 25.00 रुपए
हिंदी के विख्यात लेखक श्री वियोगी हरि ने इस पुस्तक में आत्म-विश्लेषण करते हुए यही विचार व्यक्त किए हैं। उनके साहित्य को और उनकी सामाजिक सेवाओं को लेकर लोकमानस पर उनकी जो छाप पड़ी है, वह वास्तविकता से कितनी दूर है, यह उन्होंने इस पुस्तक में दिखाया है; और उस संबंध में अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। पुस्तक बोधप्रद है। वह दूसरों को देखने और उनकी असलियत को समझने की दृष्टि प्रदान करती है। यह भी बताती है कि दूसरों की प्रशंसा से किसी को भी अभिमान नहीं करना चाहिए, बल्कि और भी विनम्रता से अपने सेवाकार्य में रत हो जाना चाहिए। विचारों के साथ-साथ लेखक की शैली अपने ढंग की निराली है। इसमें प्रवाह है और काव्य भी।
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