Manav Aur Dharm (PB)

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Author: INDRACHANDRA SHASTRI
ISBN: 81-7309-092-0
Pages: 180
Language: Hindi
Year: 2005
Binding: Paper Cover

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Book Description

वर्तमान मानव जीवन के शाश्वत मूल्यों को छोड़कर अस्थायी मूल्यों की ओर झुक रहा है। परिणामस्वरूप समस्याएं और संघर्ष उत्तरोत्तर बढ़ रहे हैं। वैयक्तिक, सामाजिक तथा राष्ट्रीय जीवन अशान्त हो गया है। तात्कालिक समाधान अपने-आपमें समस्याओं का रूप धारण कर रहे हैं। ऐसी स्थिति में एक ही मार्ग है कि शाश्वत मूल्यों की पुनः प्राण प्रतिष्ठा की जाय और इसका अर्थ है कि धर्म को जीवन का आधार बनाना।

प्राचीन भारत में भौतिक मूल्यों के स्थान पर आध्यात्मिक मूल्यों को महत्त्व मिलता रहा है। यही कारण है कि वह ऐसे महापुरुषों एवं परम्पराओं को जन्म दे सका, जिन्होंने समस्त विश्व में प्रकाश-स्तम्भ का कार्य किया। वर्तमान विश्व को उस प्रकाश-स्तम्भ की आवश्यकता और भी अधिक है, किन्तु संकुचित साम्प्रदायिकता ने उसे ढक लिया है। आवश्यकता इस बात की है कि आवरण हटाकर उस प्रदीप को पुनः प्रज्वलित किया जाय, जिससे अन्धकार में भटकती हुई मानवता प्रकाश प्राप्त कर सके।

प्रस्तुत पुस्तक इसी विषय पर प्रकाश डालती है। विद्वान् लेखक ने विभिन्न धर्मों का गहराई से तुलनात्मक अध्ययन किया है और मानवजीवन के संदर्भ में उसके महत्त्व का इस पुस्तक में विवेचन किया है। हमें विश्वास है यह कृति सभी वर्गों एवं विश्वासों के पाठकों के लिए लाभदायक होगी।

हमें हर्ष है कि इस पुस्तक के प्रकाशन के साथ दिवंगत जैनाचार्य श्री विजयवल्लभ सूरी की स्मृति जुड़ी हुई है। आचार्यजी शुष्क क्रिया-काण्ड एवं हृदयहीन निवृत्ति के समर्थक नहीं थे और न ऐसी प्रवृत्ति के, जिसमें मानव की अन्तरात्मा लुप्त हो जाय।

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