भगवान हमारा मित्र
चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य
यह पुस्तक छोटी-सी है, पर इसकी अनुभूतियां बड़ी गहरी हैं। हमारा पक्का विश्वास है कि जो भी पाठक इसे मनोयोगपूर्वक पढ़ेंगे, वे इससे अवश्य लाभान्वित होंगे। यह पुस्तक भारत के प्रकांड विद्वान और दर्शन-शास्त्री श्री राजगोपालाचार्य द्वारा मूल रूप में तमिल में लिखी गई है। राजाजी की लेखनी और विद्वता से भारतीय पाठक भली-भांति परिचित हैं। उनकी ‘दशरथ नंदन श्रीराम’, ‘महाभारत कथा’ तथा अन्य पुस्तकें पढ़कर जाने कितने पाठकों को लाभ पहुंचा है। हम आशा करते हैं कि उनकी यह पुस्तक पाठकों को स्थायी सुख और शांति का मार्ग दिखावेगी। पुस्तक का हिन्दी रूपांतर राजाजी की सुपुत्री ने मूल तमिल से किया है। इसलिए पुस्तक की प्रामाणिकता असंदिग्ध है।
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