Dhire-Dhire,Dhire-Dhire
$1
Author: AJITKUMAR
ISBN: 978-81-7309-855-8
Pages: 112
Language: Hindi
Year: 2015
- Description
- Additional information
- Reviews (0)
Description
कविवर अजितकुमार हिंदी गद्य की सर्जनात्मकता का एक उल्लेखनीय नाम है। वे पाँच दशकों से हिंदी गद्य में निरंतर नए प्रयोग करते रहे हैं। उनके द्वारा किए गए अंकन’ साहित्य की महत्त्वपूर्ण उपलब्धि कहे जा सकते हैं। वास्तव में अंकन कोई स्वतंत्र साहित्यिक विधा नहीं है, टीप, डायरी, रोजनामचा, टिप्पणी, शब्दचित्र, जर्नल, नोट्स, स्क्रैप बुक, जाटिंग्स आदि आदि मिली-जुली लेखन पद्धतियों के लिए प्रयुक्त एक ऐसा ‘नाम’ है, जिसका मुक्त उपयोग अजितकुमार लंबे समय से करते आए हैं। हिंदी की लगभग सभी नामी-गिरामी पत्रिकाओं में उनका अकाल्पनिक गद्य-वृत्त छपता रहा है। उनकी ‘अंकन’ कला की पुस्तक ‘अंकित होने दो’ 1962 ई. में प्रकाशित हुई तो साहित्य-समाज में उसकी भूरि-भूरि प्रशंसा हुई। मैंने अपने विद्यार्थी जीवन में उस पुस्तक को पढ़ा तो चकित रह गया था। आज तक मेरे मन पर उस पुस्तक का अमिट अंकन है। मैं उस पुस्तक की अंतर्यात्रा को अपने जीवन की एक अविस्मरणीय घटना मानता हूँ। मेरे जैसे अन्य साहित्य-सहचर भी अवश्य होंगे जो अजितकुमार के गद्य की अपूर्वता को भूले नहीं होंगे। हाल ही में जो अंकन ‘कविवर बच्चन के साथ 2009 में संकलित हुए हैं-वे चाहे दर्ज पचास वर्ष पहले हुए हों, उनकी ताजगी आज भी मन को मोहिती है। यहाँ भूलने के विरुद्ध बात यह भी है कि ‘अंकन’ के लेखन को अजित जी ने एक सायास ढर्रा कभी नहीं बनाया। हल्के मन से जीवन की सहज लय को गहते हुए उन्हें पाठक को परोस दिया है। इनके पाठ में एक तरह की सर्जनात्मकता के अनुभव से गुजरना है। धीरे-धीरे धीरे-धीरे’ शीर्षक से ‘अंकन’ का यह प्रथम खंड ‘आ वसंत रजनी’ का अद्भुत जीवनानुभव है।
Additional information
Weight | 155 g |
---|---|
Dimensions | 21,5 × 13,7 × 0,5 cm |
Reviews
There are no reviews yet.