और रमा लौट आई
भूमंडलीकृत वर्तमान समय में लगातार हो रहे मानव-मूल्यों का क्षरण चिंता का विषय है। सूचना-क्रांति के इस युग में जहाँ एक तरफ हम वैश्विक परिधि को लाँघ रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ कहीं-न-कहीं अपनी जड़ों से भी कटते जा रहे हैं। जिसके कारण तमाम भौतिक सुविधाओं के बावजूद जीवन नीरस होता जा रहा है। व्यक्तिवाद का चरम निराशाजन्य अंधकार ही तो है।
डॉ. योगेंद्र नाथ शर्मा ‘अरुण’ की ये कहानियाँ जीवन की इसी आपाधापी से निकली हैं जो जीवन-मूल्यों के राग को बचाने का प्रयास करती हैं। पाठकों को यह कहानियाँ अवश्य पसंद आएँगी।
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