Bahash Me Stiri/बहस मे स्त्री-राधाबल्लभ त्रिपाठी

RS:

Price range: ₹120 through ₹160

217 People watching this product now!

Author: RADHAVALLABH TRIPATHI
Pages: 95
Language: Hindi
Year: 2105 (PB), 2014 (HB)
Binding: Both

Fully
Insured

Ships
Nationwide

Over 4 Million
Customers

100%
Indian Made

Century in
Business

Book Description

बहस मे स्त्री

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

प्रसिद्ध विद्वान् आचार्य राधावल्लभ त्रिपाठी ने 7 मार्च 2011 को वत्सल निधि न्यास, दिल्ली में हीरानंद शास्त्री स्मृति व्याख्यान माला के अंतर्गत व्याख्यान दिया था। यह पुस्तक बहस में स्त्री’ उसी व्याख्यान का विस्तारित रूप है। मूल व्याख्यान का पाठकों के सामने शीर्षक था* भारतीय शास्त्रार्थ परंपरा में स्त्रियों का योगदान। इस व्याख्यान को पुस्तिका का आकार देते समय बहुत सी सामग्री जोड़ी गई और व्याख्यान का नया नामकरण कर दिया गया ‘बहस में स्त्री’। यहाँ कहना होगा कि इसमें मूल विषय से किंचित विषयांतर हुआ है। लेकिन विचारों की अंतर्योजना खंडित नहीं है। विद्वान् लेखक ने बड़ी भारी तैयारी से अब तक लगभग अछूते विषय को गहन अनुसंधान के साथ प्रमाता समाज के सामने खोलकर रख दिया है।

सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ ने अपने पिताश्री हीरानंद शास्त्री की स्मृति में वत्सल निधि’ की स्थापना भारतीय साहित्य की सेवा में एकाग्र भाव से समर्पित एक न्यास के रूप में सन् 1980 में की थी। न्यास का प्रमुख उद्देश्य सामाजिकों के साहित्य-संस्कार के साथ सौंदर्य-बोध का संशोधन-संपादन करना रहा है। इस संकल्प को मूर्त रूप देने के लिए ही हीरानंद शास्त्री स्मारक व्याख्यान माला का आरंभ किया गया। अज्ञेय जी के पिता का पूरा जीवन साहित्य, इतिहास, कला, पुरातत्त्व का विचार-यज्ञ करते हुए व्यतीत हुआ। पंडित हीरानंद शास्त्री भारतीय इतिहास, पुरातत्त्व, पुरालेख, संस्कृत भाषा–साहित्य-दर्शन के मर्मज्ञ विद्वान थे। अज्ञेय जी पर पिता के व्यक्तित्व का बहुत दूर तक गहरा प्रभाव पडा। पिता के कठोर अनुशासन में वे संस्कारित हुए। अज्ञेय जी साहित्य के चिंतन-सृजन में संस्कार की बात करते कभी थकते नहीं थे। इतना ही नहीं, निरंतर अपने को संस्कारित करने को । वे आधनिकता मानते हैं। इस आधुनिकता में विद्रोह और अस्वीकार का साहस सम्मिलित रहा है। विद्वान स्व. डॉ. हीरानंद शास्त्री की स्मृति का प्रेरणादायी अर्थ विचार-निष्पत्ति में तब ढला जब यह व्याख्यान माला की योजना बनी कि हीरानंद शास्त्री व्याख्यान माला के अंतर्गत प्रति वर्ष भारतीय इतिहास, साहित्य, कला, संस्कृति से संबंधित विषयों पर अधिकारी विद्वानों, प्रसिद्ध रचनाकारों, दार्शनिकों, कलाकारों आदि के व्याख्यानों का आयोजन होगा। हीरानंद शास्त्री स्मारक व्याख्यान माला का प्रथम व्याख्यान त्रिवेणी कला संगम, नई दिल्ली के सभागार में 19 से 23 दिसंबर 1980 में हुआ। इस व्याख्यान माला का शीर्षक था* भारतीय परंपरा के मूल स्वर’। वक्ता थे प्राचीन इतिहास, साहित्य, कला, दर्शन के शीर्षस्थ मनीषी प्रोफेसर गोविंद चंद्र पाण्डे। इस तरह यह व्याख्यान श्रृंखला शुरू हुई और आज तक किसी-न-किसी रूप में चल रही है। वत्सल निधि के अध्यक्ष माननीय डॉ. कर्ण सिंह जी की यह इच्छा रही है कि इन उच्च कोटि के व्याख्यानों को पुस्तक रूप में प्रकाशित करके पाठकों को उपलब्ध भी कराया जाए। उनकी प्रेरणा से ही अज्ञेय प्रवर्तित हीरानंद शास्त्री स्मारक व्याख्यान माला के व्याख्यानों को प्रकाशित किया जाता है। बहस में स्त्री’ उसी व्याख्यान माला की एक कड़ी है। इस अद्भुत व्याख्यान को पुस्तकाकार उपलब्ध कराने के लिए वत्सल निधि न्यास मंडल आचार्य राधावल्लभ त्रिपाठी जी के प्रति हृदय से कृतज्ञता व्यक्त करता है।

Related Books to this Category...

You May Be Interested In…

Customer Reviews

0 reviews
0
0
0
0
0

There are no reviews yet.

Be the first to review “Bahash Me Stiri/बहस मे स्त्री-राधाबल्लभ त्रिपाठी”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You have to be logged in to be able to add photos to your review.