अब ना बनेगी देहरी
डोगरी भाषा की प्रख्यात लेखिका एवं कवयित्री पद्मा सचदेव का हिंदी का पहला उपन्यास है ‘अब न बनेगी देहरी’ उसकी मूल कथा की बनावट जिस परिवेश की है, उसका सच्चा और जीता जागता चित्रण अभिभूत कर देता है। उसके पात्रों की अन्तर्कथा और लोगों से संबंध इतने आत्मीय हैं कि मानवीयता के प्रति आस्था और विश्वास जगाता है। यूं तो यह कहानी परम सुंदरी कम आयु में विधवा रेवती की है, पर जब वह घबरा कर आत्महत्या करने चलती है और शिव मंदिर के महंत गिरिबाबा उसे बचा लेते हैं, तो वह उन्हें रूहानी प्रेम करने लगती है। रेवती की बुआ की उसी कारण देहरी यानी समाधि बनी थी, पर अब वह प्रण करती है कि लोग-लाज के भय से अब कोई देहरी नहीं बनेगी।
Reviews
Clear filtersThere are no reviews yet.