दलितों के दलित
प्रस्तुत कृति ‘दलितों का दलित’ ऐसी मानवीय संवेदनाओं का संग्रह है, जिसमें मानवता क्षण-क्षण मरती है और पल-पल रोती है। यह कृति असीम वेदनाओं और अपमानों का लेखा-जोखा भी है। इस कृति की सच्चाई का दर्पण वाल्मीकि जातियों और सफाई कर्मियों के सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक स्थिति का शोधपूर्ण उल्लेख ही नहीं करता बल्कि सामाजिक चिंतकों, विद्वान लेखकों के विचारों, शैक्षिक रोजगार-परक मार्गदर्शन सबंधी जानकारियों तथा विधि संस्थाओं के माध्यम से हमारे सम्मुख अनेक प्रश्न भी प्रस्तुत करता है कि वाल्मीकि जातियों और सफाई कर्मियांे को 61 वर्ष की आजादी में गुलामी ही क्यों मिली? क्या परंपरागत कार्यों से जुड़े रहने से? क्या शिक्षा के अभाव से? क्या जातिगत वर्ण व्यवस्था की मानसिकता से या फिर अम्बेडकरवादी विचारधारा को ग्रहण न करने से? इन सभी प्रश्नों का उत्तर आप और हमकों देना है।
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