Darwaja Khula Rakhana/दरवाजा खुला रखना-पद्मा सचदेव PB 130/- HB 300/-

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ISBN:978-81-7309-5
Pages:220
Edition:First
Language:Hindi
Year:2011
Binding:Paper Back

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Book Description

दरवाजा खुला रखना

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

साहित्य की कोई सीमा नहीं होती। वह देश, काल और परिवेश लाँघकर सर्वकालिक होता है। साहित्य मानवनिर्मित भौगोलिक सीमाओं का अतिक्रमण करता है क्योंकि उसका उद्देश्य मनुष्य का हित तथा मनुष्यता की रक्षा है।

कभी लाहौर अखंड भारत का साहित्यिक केंद्र हुआ करता था, लेकिन भारत-पाकिस्तान के बँटवारे ने न सिर्फ दो देशों को जन्म दिया बल्कि उसे एक-दूसरे का कट्टर दुश्मन भी बना दिया। राष्ट्रीयता और सांप्रदायिकता के ज्वार में दोनों देशों के राजनीतिज्ञ कई बार आपस में युद्ध कर चुके हैं या युद्ध जैसी स्थिति बनाए रखना चाहते हैं। परंतु इस सबसे अलग भारत तथा पाकिस्तान के बीच साहित्यिक तथा सांस्कृतिक एकता की कड़ी कभी नहीं टूटी। आज भी प्रेमचंद जितने पाकिस्तान के हैं उतने ही फैज अहमद फैज हिंदुस्तान के हैं। कभी पाकिस्तानी शायरों की शायरी को हिंदुस्तानी गायक अपने सुरों में ढालते हैं तो कभी हिंदुस्तानी शायरों की शायरी को पाकिस्तान के गायक अपने सुरों में पिरोते हैं।

इब्ने इन्शा एक ऐसे ही शायर हुए जो पाकिस्तान के होते हुए भी हिंदुस्तानी पाठकों के दिलों में बसे रहे। इस पुस्तक में डोगरी की प्रसिद्ध लेखिका पद्मा सचदेव के द्वारा इब्ने इन्शा का आत्मीय

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