इक्कतीस कहानियाँ
प्रसिद्ध कहानीकार सुदर्शन वशिष्ठ हिंदी कहानी कला को एक खास ऊँचाइयों तक पहुँचाने वाले कहानीकारों में अग्रणी रहे हैं। उनकी कहानियों की लोक-संवेदना में समय-समय की चिंताओं को लेकर गहरी प्रश्नाकुलताएँ हैं। बड़ी बात यह है कि देवता नहीं है’ या ‘पहाड़ देखता है’ जैसी कोई भी कहानी हो–उसे वे गढ़ते नहीं हैं, प्रस्तुत करते हैं। इसलिए जीवन का गतिशील यथार्थ इन कहानियों की सर्जनात्मक शक्ति बना है। उनकी हर कहानी पिछली कहानी से अलग हटकर नया ‘पाठ’ रचती है। इसलिए कहानी के विमर्श या भाष्य में अर्थ ध्वनियों की भरमार रहती है। कहानियाँ अपने रचनात्मक स्व-भाव में सपाट नहीं हैं, बिंबबहुल हैं और अमूर्तता को हर स्तर पर कहानीकार दूर रखता है। ये बिंबबहुल कहानियाँ अर्थ-ग्रहण ही नहीं करातीं, कथ्य की सप्रेषणीयता की वृद्धि करती है। एक तरह की नैतिक विवेक वयस्कता के कारण इन कहानियों का समाज’ हमारे समय को अपने ढंग से, ज्ञानात्मक संवेदना से परिभाषित करता चलता है। कहानी का रूप-विधान मानो कथा को एक सहज अंतर्योजना में। बाँधने के लिए बेचैन रहता है। कहानियों में जीवन-जगत् का संघर्ष-तनाव अपनी सर्जनात्मक संभावनाओं में प्रभावी है। और जटिल मनोवेगों की गाँठ खोलने में सक्षम। मैं मानता हूँ कि श्री सुदर्शन वशिष्ठ के कहानी-कला के ये प्रयोग एक सदाबहार कला के अंग हैं और जीवनानुभवों के वैविध्य और विरोधाभासों को रचने में सक्षम हैं।
सच बात यह है कहानियों में सुदर्शन वशिष्ठ देखते बहुत अच्छा हैं, देखने की इंद्रिय उनकी बहुत प्रबल हैं। लेकिन जितना अच्छा देखते हैं उतना अच्छा सुनते नहीं हैं। इसलिए कहानियों का श्रवण संसार कहीं-कहीं दुर्बल पड़ जाता है।
मैं सुदर्शन वशिष्ठ की इन अद्भुत कला से भरी कहानियों को पाठक समाज के सामने लाने में बड़े उत्साह एवं प्रसन्नता का अनुभव कर रहा हूँ। मुझे विश्वास है कि इन कहानियों का हिंदी के प्रमाता समाज में जोरदार स्वागत होगा।
Reviews
Clear filtersThere are no reviews yet.