गंगा तट से भूमध्यसागर की ओर
पं. विद्यानिवास मिश्र ने ‘गंगा तट से भूमध्यसागर तक’ के इन निबंधों में परंपरा-संस्कृति-साहित्य के चिंतन का इस मर्मज्ञता के साथ ‘आकलन’ प्रस्तुत किया है कि उनके प्रति हमारा सिर कृतज्ञता से झुक जाता है। पंडित जी ने अपने चिंतन से साहित्य-समीक्षा को जो नया अपूर्व मोड़ दिया-वह अविस्मरणीय है। उनकी चिंतन-यात्रा की विशिष्ट सांस्कृतिक संदर्भ में ही उसके सच्चे स्वरूप की पहचान संभव है। प्राचीन साहित्य एवं साहित्यशास्त्र के विचार-शिल्प की पूर्व-स्थापना को विषय की जड़ों में बैठकर पुनः निर्मित या विनिर्मित करना ऐतिहासिक दृष्टि से एक बड़ा कार्य है।
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