जागे तभी सवेरा
‘मण्डल’ ने अनेक उपन्यास प्रकाशित किए हैं। वस्तुतः इन उपन्यासों के प्रकाशन के पीछे एक दृष्टि रही है और वह यह कि भारतीय एवं अन्य भाषाओं के चुने हुए उत्तम उपन्यास हिंदी के पाठकों को सुलभ हो जाएं। प्रस्तुत उपन्यास गुजराती के प्रसिद्ध लेखक श्री जयभिक्खु के ‘प्रमनुं मंदिर’ का हिंदी रूपांतर है। गुजराती में इसके कई संस्करण हुए हैं। इसका रूपांतर श्री कस्तूरमल बांठिया ने किया है। हिंदी के पाठकों को इतनी सुंदर कृति उपलब्ध करने के लिए हम उने आभारी हैं। पांडुलिपि की तैयारी में योगदान देने के लिए दैनिक हिन्दुस्तान के भूतपूर्व संपादक श्री मुकुट बिहारी वर्मा के ऋणी हैं।
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