महाविजय
भारतीय वाङ्मय प्रेरक और नैतिक कथाओं का पिटारा है पर वर्तमान समय में हमारी नई पीढ़ी उससे दूर होती जा रही है। हमारी संस्कृति में कहानियों के माध्यम से नैतिक शिक्षा पर विशेष बल दिया जाता रहा है। अफसोस की बात यह है कि हमारे बच्चे कथा-संस्कृति की इस विशाल परंपरा से कटते जा रहे हैं जिसके कारण उनके व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास अवरुद्ध हो रहा है। मात्र आर्थिक उपलब्धि को हासिल करना भारतीय जीवन-पद्धति का लक्ष्य कभी नहीं रहा, जो आज सर्वत्र दिखाई पड़ता है। ऐसे समय में बच्चों को, जो भविष्य के कर्णधार हैं—भारतीय कथा-परंपरा से जोड़कर उन्हें भारत की बहुसांस्कृतिक विशेषताओं के प्रति आकर्षित किया जा सकता है। डॉ. योगेंद्र नाथ शर्मा ‘अरुण’ ने बड़े ही मनोयोगपूर्वक इन बाल कथाओं को एक सूत्र में पिरोया है। जैसा कि लेखक ने स्वयं लिखा है कि बच्चों व किशोरों को जीवंत भारतीय संस्कृति की अमृत-चिंतन धारा से परिचय कराना’ ही इस पुस्तक का उद्देश्य है। बच्चे इन कहानियों को पढ़कर प्रेरणा ग्रहण करेंगे साथ ही भारत की अविच्छिन्न बहुरंगी सांस्कृतिक परंपराओं से भी जुड़ेंगे। आशा है पाठक डॉ. शर्मा की मंडल से प्रकाशित पुस्तकें सभी धर्म महान’ तथा ‘और रमा लौट आई’ की तरह इस पुस्तक का भी स्वागत करेंगे।
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