Bhasha Sahitya Aur Rashtriyata
$1 – $4
Pages: 152
Edition: First
Language: Hindi
Year: 2011
Binding: Paper Back
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Description
भारत एक बहुभाषिक देश है। इसके बावजूद कभी यहाँ भाषाई अलगाव नहीं रहा। औपनिवेशिक शक्तियों ने हमारी इस भाषाई अस्मिता को हमेशा तोड़ने की कोशिश की और इस बहाने अंग्रेजी थोपने की सतत कोशिश भी जिसमें वे सफल भी हुए। लेखक की चिंता जायज है कि भारतीय भाषाओं पर लगातार अंग्रेजी भाषाई ग्रहण । का दायरा बढ़ता जा रहा है। इस पुस्तक के लेखक श्री कृष्ण कुमार ने पूरे मनोयोगपूर्वक साहित्य, समाज और राष्ट्रीयता के संदर्भ में भाषाई अस्मिता और अस्तित्व के प्रश्नों की खोज करने का प्रयास किया है। लेखक का भारत तथा विदेश (यु.के.) में होनेवाले बदलावों पर पैनी नजर है। उनकी चिंता के केंद्र में उन कारणों की खोज भी हैं जिनके कारण दो से तीन प्रतिशत अंग्रेजी जाननेवाले लोग शेष भारतीय जनता पर भारी पड़ते हैं। लेखक वैश्वीकरण को पश्चिमीकरण की संज्ञा देते हुए राष्ट्र को एक स्थायी भाषा की पहचान देने की आकांक्षा रखते हैं।
डा. कृष्ण कुमार की यह पुस्तक समग्रता में हिंदी की राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय भूमिका की खोज का सराहनीय प्रयास है।
Additional information
Weight | 200 g |
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Dimensions | 14 × 21,3 × 0,90 cm |
Book Binding | Hard Cover, Paper Back |
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