देहरी की बात
प्रोफेसर रमेशचंद्र शाह समकालीन साहित्य में रचना और आलोचना के लिए एक जाना-माना नाम है। लगभग चार दशकों से वे सृजन और आलोचना के क्षेत्र से सम्बद्ध हैं। उनके लेखन का एक अलग मुहावरा है। उनका समस्त चिन्तन हिन्दी के अति प्रसिद्ध लेखक अज्ञेय और निर्मल वर्मा की राह का चिन्तन है और स्वतंत्र भी। भारतीयता, परम्परा, संस्कृति और साहित्य को वे अनवरत संस्कार की परम्परा से जोड़ते हैं। उनके लिए अपने को निरंतर माँजना ही आधुनिकता का पर्याय है।
उनकी प्रसिद्ध पुस्तक ‘आलोचना का पक्ष’, ‘भूलने के विरुद्ध’, ‘छायावाद की प्रासंगिकता आदि में उन्होंने नए रचनाकारों पर कृति-केन्द्रित चिन्तन किया है। कथाकार के रूप में ‘गोबर गणेश’, ‘किस्सा गुलाम’, ‘पूर्वापर’,आखिरी दिन’ और ‘पुनर्वास बहु-प्रशंसित और बहु चर्चित रहे हैं। उनके तीन कहानी संग्रह ‘मौहल्ले का रावण’, ‘मानपत्र’ तथा ‘थियेटर’ समकालीन कहानी में विशिष्ट योगदान माने जाते हैं। उन्होंने कुछ अच्छे नाटक भी लिखे। है। प्रोफेसर रमेशचंद्र शाह को कविता के लिए मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी का पुरस्कार और उपन्यास लेखन के लिए भारतीय भाषा परिषद् का पुरस्कार मिला है। उनके समस्त कृतित्व के लिए मध्य प्रदेश शासन द्वारा उन्हें खर सम्मान से सम्मानित किया गया है। उन्हें के. के. बिरला फाउडेशन। के ‘व्यास सम्मान’ से भी सम्मानित किया गया है।
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