नैमित्तिक
प्रसिद्ध कथाकार-कवि-आलोचक प्रो. रमेशचंद्र शाह ने लगभग पाँच दशकों से भी ज्यादा समय में न जाने कितनी गोष्ठियों में कितने व्याख्यान दिए हैं। उन्होंने प्रत्येक मंच, प्रत्येक सभा में यह विचार व्यक्त किया है कि हमारी सभ्यता-संस्कृति के केंद्र में हमारे कवि रहे हैं। आज वे मानो परिधि पर धकेल दिए गए हैं। अपनी उस केंद्रीय हैसियत को पाने के लिए कवि को समाज के आत्मबिंबों को संयोजित करनेवाली संस्कृति का पावनताजनित विवेक जागृत करना होगा-जिसे उत्तर-आधुनिकतावाद, उत्तर-उपनिवेशवाद, उत्तर-साम्राज्यवाद, वृद्ध पूँजीवाद, मीडिया नवक्रांति तथा बाजारवाद ने नष्ट करने का कार्य किया है। हमारा अतीत हमारे सामाजिक संस्कारों की वर्तमानता में अभी तक धड़क रहा है। हमारे सामूहिक अवचेतन के आदिम बिंबों में हमारे पुरखों की आत्म-चेतना दमक रही है। मनुष्य के अकेलेपन और आत्मनिर्वासन की त्रासदी को वर्तमान साहित्य अपनी छाती पर झेल रहा है। हमें अपने भक्ति-काव्य, भक्तिशास्त्र तथा भक्ति-दर्शन के मूल स्रोतों में उतरकर वर्तमान को नई अर्थवता देनी चाहिए। परंपरा, इतिहास, मिथक, आख्यान-सभी का नया भाष्य करना होगा तभी हमारा नचिकता संकल्प जूझकर जय पा सकेगा। हमें हर कीमत चुकाकर चिंतन की स्वाधीनता और स्वदेश-स्वभाषा का स्वाभिमान’ पाना होगा। तीसरी दुनिया का देश कहलाने की जहालत हम कब तक झेलते रहेंगे।
प्रो. रमेशचंद्र शाह तमाम प्रश्नाकुलताओं-चिंताओं, समस्याओं पर गहन-गंभीर चिंतन करनेवालों में अग्रणी रहे हैं। उनके रचनात्मक और आलोचनात्मक लेखों, भाषणों, डायरियों, सस्मरणों, पत्रों से नई पीढ़ी ने प्रेरणा एवं शक्ति पाई है। शाह जी ने हमेशा माना है कि साहित्य समग्र अस्तित्व की चिंता करता है। उसकी भाषा विश्व के अवधारणात्मक वशीकरण की भाषा नहीं होती है। आलोचना-चिंतन का पक्ष बुद्धि वैभव, सांस्कृतिक आत्मविश्वास और वैचारिक स्वराज का पक्ष है। मैं मानता हूँ कि सर्जक रमेशचंद्र शाह की प्रसिद्धि एक चिंतक, कथाकार, डायरी-संस्मरण लेखक तथा प्रखर आलोचक के रूप में उल्लेखनीय रही है। वे मूलगामी चिंतन से । समर्थ-संपन्न मुग्धकारी वक्ता हैं। इसलिए उनके व्याख्यानों-भाषणोंवार्ताओं में एक विशेष स्वाद रहता है। हिंदी का प्रबुद्ध पाठक समाज इस आस्वादन की भागीदारी में पीछे नहीं रहेगा। इसी विश्वास के साथ मैं व्याख्यानों के इस महत्त्वपूर्ण संकलन को आपके हाथों में सौंपते हुए हार्दिक प्रसन्नता का अनुभव कर रहा हूँ।
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