निरुपमा करना मुझको छमा
इस संग्रह में विश्वकवि रवींद्रनाथ ठाकुर के 57 चुने हुए गीतों को संकलित किया गया है। उनके गीत विद्यापति की तरह बंगाल के हर घर में हर आयु वर्ग के द्वारा गाए जाते हैं और विद्यापति की तरह ही उनके गीत देश और काल का अतिक्रमण कर सार्वजनीन और सर्वप्रिय हो चुके हैं। उन्होंने अपने गीतों के बारे में ठीक ही भविष्यवाणी की थी कि ‘भविष्य में मेरी कविता, कहानी, नाटक के साथ चाहे जो बीते, मेरे गीतों को बंगाली समाज को ग्रहण करना ही होगा। और आज उसके गीत बंगाल की बात छोड़िए समग्र भारत और विश्वभर में गुनगुनाए जाने लगे हैं। रवींद्रनाथ ठाकुर के इन गीतों का हिंदी अनुवाद यशस्वी कवि प्रयाग शुक्ल ने अपनी माधुर्यपूर्ण भाषा में किया है। इन गीतों में पाठकों को मूल बांग्ला का आस्वाद और आनंद एक साथ मिलेगा।
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