उर्दू शायरी
यह प्रसन्नता का विषय है कि नई पीढ़ी में उर्दू शायरों को पढ़नेसमझने का शौक बढ़ रहा है। हम सभी का अनुभव यही है कि एक नया पाठक-समाज सामने आ रहा है और इस समाज की जड़ीभूत सौंदर्याभिरुचियाँ टूटी हैं। रोजमर्रा की जिंदगी में उर्दू शायरी का बोलबाला बढ़ा है और प्रबुद्ध वर्ग भाषणों-वार्ताओं में उर्दू शेर बोलता है। उर्दू की सबसे कीमती चीज है-उर्दू गजल । उर्दू-गज़ल का चस्का हिंदी-पाठकों, कवियों को ऐसा लग गया है कि हिंदी के अनेक कवि उर्दू गज़ल की तर्ज पर हिंदी में गज़ल लिख रहे हैं और हिंदी कवि सम्मेलनों में उर्दू गज़ल की धूम रहती है। हिंदी के कवि उर्दू-गज़ल में नए-नए प्रयोग कर रहे हैं और इसमें नया भाव-बोध आ रहा है। उर्दू जाननेवालों की संख्या कम हो रही है, लेकिन उर्दू शायरी के संकलन भारतीय भाषाओं के बाजार में खूब बिक रहे हैं। इसका कारण है कि खड़ी बोली में हिंदी-उर्दू दोनों भाषाओं के शब्द एक खास रंग और लय का आनंद बढ़ा रहे हैं। यह बात कितनी दिलचस्प है कि खड़ी बोली का पहला नमूना अमीर खुसरो में मिलता है।
आज उर्दू शायरी के नाम पर केवल जाम-ओ-मीना का, कोरे इश्क-मुहब्बत की रंगत खत्म हो चुकी है। भारत में उर्दू सांस्कृतिक नवजागरण में सहयोग देनेवाली भाषा रही है। आजादी के आंदोलन का एक बड़ा देशभक्ति, प्रकृति प्रेम का अरमान उर्दू-कविता में मिलता है। उर्दू में हिंदी की तरह हमारी जातीय अस्मिता निखरक सामने आती है। सौंदर्य-बोध का नया गुलदस्ता उर्दू सजाती-सँवारती है। इस संकलन में वली दकनी से लेकर फैज अहमद फ़ैज, बी. बद्र, निदा फ़ाज़ली तक को आप एक साथ पाएँगे। मैं हिंदी-उर्द अंग्रेजी के विद्वान प्रो. कुलदीप सलिल के प्रति अपनी हार्दिक कृतज्ञता व्यक्त करता हूँ, जिन्होंने एक विशिष्ट भूमिका के साथ यह संकलन पाठकों तक पहुँचाने का अविस्मरणीय श्रम किया है। हमें विश्वास है। कि इस संकलन का पाठक खुले दिल से स्वागत करेंगे।
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