Parampara Ka Purusharth/परंपरा का पुरुषार्थ-कृष्ण बिहारी मिश्र

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Author: KRISHNA BIHARI MISHRA
Pages: 264
Language: Hindi
Year: 2015
Binding: Both

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Book Description

परंपरा का पुरुषार्थ 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

प्रज्ञा-पुरुष कृष्ण बिहारी मिश्र ने सर्जनात्मक प्रतिभा के संस्कृति नायक पंडित विद्यानिवास मिश्र पर परंपरा का पुरुषार्थ’ पुस्तक लिखकर हिंदीसमाज का बड़ा उपकार किया है। पंडित विद्यानिवास मिश्र जीवनभर लोक और शास्त्र की चिंतन परंपराओं का नया भाष्य प्रस्तुत करते रहे। उन्होंने भाषा तथा साहित्य की अंतर्यात्रा करते हुए परंपरा, संस्कृति, आधुनिकता, धर्म और काव्यार्थ पर कई कोणों से विचार-मंथन किया। वे युग-प्रवर्तक रचनाकार सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ के सखा-सहचर थे और भारतीय चिंतन के पावनताजनित विवेक को पश्चिमी आधुनिकता से सताए जाते हुए भारत और भारतीयता को बचाए रखने के प्रबल आकांक्षी। उन्होंने ‘परंपरा बंधन नहीं’ पुस्तक लिखकर इस सत्य से साक्षात्कार कराया था कि परंपरा का गलत अनुवाद ‘ट्राडीशन’ कर तो दिया गया है लेकिन यह गलत अनुवाद है। फिर भारत में अनेक परंपराएँ रही हैं। इस देश में दूसरी परंपरा की खोज’ करना चौंकाने भर का कौशल है। अनेक तरह की चिंतन परंपराएँ मिलकर इस बहुभाषी और बहुसांस्कृतिक देश में एक महत् परंपरा को सातत्य एवं परिवर्तन की शक्ति के साथ सामने लाती हैं। कृष्ण बिहारी मिश्र जी ने इस विचार-यात्रा में रमने के बाद कहा है कि ‘जैसा मैथिलीशरण गुप्त के संदर्भ में अज्ञेय ने कहा था और विवेकसम्मत धारणा है कि किसी जाति, संस्कृति और साहित्य की परंपरा दो नहीं, एक ही होती है। एक होने का अर्थ इकहरी होना कतई नहीं होता और किसी परंपरा का बहुआयामी होना उसकी समृद्धि का ही सूचक है। चिंतन के पृथक आयाम और रचना की भिन्न मुद्रा आधार पर पृथक परंपरा की घोषणा कोरी महत्वाकांक्षा हो सकती है।

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