प्रभंजन
ओड़िशा के एक समुद्रतटीय गाँव में पैदा हुए मनोज दास आज भारत के कथाकारों में अग्रणी नाम है। प्राकृतिक-सौंदर्य के अनेक प्रकार के अनुभवों से संपन्न होने के कारण उनके सृजन में भारतीय जीवन की कालिदासीय लय रची-बसी हुई है। प्रकृति के प्रलयंकारी चक्रवातों, बाढ़ों तथा अकालों को उन्होंने अपनी खुली हथेलियों पर झेला है। प्रकृति के इन मधुर-कटु अनुभवों ने उनके सर्जनात्मक तनावों में एक ढंग की निष्पत्ति पाई है और उनके रचनाकार की पूरी मानसिकता को दूर तक निर्मित करने की महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की है। वे अपनी रचनात्मक मनोभूमि में जीवन वास्तव से गहरे जुड़े रहे हैं। इसलिए भारतीय कथा-जगत् में उनका विशिष्ट है। उनमें फकीरमोहन सेनापति, चिंतामणि महान्ति, कुंतला कुमारी सावत, गोपीनाथ महान्ति, नित्यानंद महापात्र, प्रतिभाराय आदि की कथा-परंपरा ने नया रंग पाया है। वे ऐसे समर्थ कथाशिल्पी हैं कि भारतीय संस्कृति की वैविध्यमयी परंपराएँ उनमें समाज-संवाद करती देखी जा सकती हैं। उनकी ज्ञानात्मक संवेदना ने विस्मय और चमत्कार को रूप विधायिनी कल्पना में सँजोकर पाठकों को मोहित किया है। कहा जा सकता है कि कथासाहित्य की दीर्घजीवी परंपरा ने उनके रचना-कर्म में स्थान ग्रहण किया है। उनका लोकप्रसिद्ध उपन्यास ‘अमृतफल’ इतिहास-पुराण के लोक संवेदनात्मक तत्त्वों से आकार ग्रहण करता है। इस तरह बेहिचक उनके उपन्यास भारतीय उपन्यासों की गौरवमयी परंपरा का प्रतिनिधित्व करते हैं।
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