स. ही. वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ के अभिभाषण
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ भारतीय साहित्य में युग-प्रवर्तक रचनाकार और चिंतक हैं। वे कवि, कथाकार, नाटककार, निबंधकार, यात्रा संस्मरण लेखक, प्रख्यात पत्रकार, अनुवादक, संपादक, यात्रा-शिविरों, सभा-गोष्ठियों, व्याख्यानमालाओं के आयोजकों में शीर्षस्थ व्यक्तित्व रहे हैं। भारतीय साहित्य में अज्ञेय का व्यक्तित्व यदि किसी व्यक्तित्व से तुलनीय है तो केवल रवींद्रनाथ टैगोर से। भारतीय सांस्कृतिक नवजागरण, स्वाधीनता संग्राम की चेतना के क्रांतिकारी नायक अज्ञेय जी का व्यक्तित्व खंड-खंड न होकर अखंड है। रचना-कर्म में नए से नए प्रयोग करने के लिए वे सदैव याद किए जाएँगे। अज्ञेय जी जीवन का सबसे बड़ा मूल्य–’स्वाधीनता’ को मानते रहे हैं।
पचास वर्ष से अधिक समय तक हिंदी-काव्य-जगत पर छाए रहकर भी वह परंपरा से बिना नाता तोड़े नए चिंतन को आत्मसात करते हुए युवतर-पीढ़ी के लिए एक चुनौती बने रह सके। यह हर नए लेखक के लिए समझने की बात है। परंपरा के भीतर नए प्रयोग करते हुए कैसे आधुनिक रहा जा सकता है, इसका उदाहरण उनका संपूर्ण रचना-कर्म है। अज्ञेय जी का चिंतन बुद्धि की मुक्तावस्था है। भारतीय आधुनिकता है। उनका स्वाधीनता-बोध गौरव-बोध से अनुप्राणित था जिसके सांस्कृतिक-राजनीतिक आयाम इतने व्यापक थे कि उसमें इतिहास-पुराण, कला-दर्शन, संस्कृति-साहित्य सब समा जाते थे। अज्ञेय जी अपने अभिभाषणों-लेखों-निबंधों में अलीकी चिंतक हैं। हमें विश्वास है कि अज्ञेय जी के नए सर्जनात्मक चिंतन से साक्षात्कार करानेवाले अभिभाषणों का यह संकलन पाठकों के लिए उपयोगी सिद्ध होगा।
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