टाम काका की कुटिया
हमें हर्ष है कि पाठकों के हाथों में एक ऐसी कृति पहुंच रही है, जिसका विश्वसाहित्य में बहुत ऊंचा स्थान है। उपन्यास-लेखिका ने इस पुस्तक में गुलामी की अमानुषिक प्रथा पर इतनी गहरी चोट की कि उस प्रथा का अन्त होकर ही रहा। श्रीमती स्टो अमरीका के एक मंत्री की पुत्री थीं। पुस्तक लिखने के 11 वर्ष बाद जब वहां के राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन उनसे मिले, तो उन्होंने उनका अभिनंदन करते हुए कहा, “अच्छा, आप ही वह छोटी-सी महिला हैं, जिन्होंने ऐसी पुस्तक लिखी कि जिसके कारण यह भयंकर गृह-युद्ध हो गया!” सच बात तो यह है कि दास-प्रथा का अन्त करने वाले व्यक्तियों के तीव्रतम तर्को से कहीं अधिक टाम काका की करुणा-जनक कहानी ने गृह-युद्ध की अग्नि प्रज्वलित की। कहा जाता है कि बाइबिल के बाद सबसे अधिक पढ़ी जानेवाली और सबसे गहरा नैतिक प्रभाव डालनेवाली यही पुस्तक है।
प्रस्तुत हिन्दी-संस्करण आज से लगभग 57 वर्ष पूर्व प्रकाशित हुआ था। इसके अनुवादक हिंदी के प्रसिद्ध शैलीकार श्री महावीरप्रसाद पोद्दार हैं। बड़े गौरव की बात है कि पुस्तक की भूमिका हिंदी के महान् लेखक श्री महावीरप्रसाद द्विवेदी ने लिखी और इसमें वर्णित कविताओं का हिंदी-रूपांतर हिंदी के यशस्वी कवि श्री गयाप्रसाद जी शुक्ल ‘सनेही’ ने किया।
इस उपन्यास की कहानी इतनी मार्मिक है कि इसे पढ़कर आज भी रोमांच हो आता है। ऐसी कृतियां कभी पुरानी नहीं पड़तीं। उनकी प्रेरणा हमेशा ताज़ी रहती है।
पुस्तक का यह संस्करण नया आकार और नयी रूप में पाठकों के समक्ष प्रस्तुत हो रहा है और आशा रखते हैं कि वे इसका हार्दिक स्वागत करेंगे।
Reviews
Clear filtersThere are no reviews yet.