मेरे गुरुवर डॉ. भरत सिंह उपाध्याय पालि भाषा एवं साहित्य के विश्वप्रसिद्ध विद्वान् रहे हैं। मैंने उनके चरणों में बैठकर पालि भाषा और साहित्य का अध्ययन किया तो पाया कि वे तो तमाम आसक्तियों से परे विमुक्त पुरुष हैं। उनकी पुस्तक ‘पालि साहित्य इतिहास’ एक अपार श्रम-साधना का ज्ञान सागर है। बुद्ध को जिन प्रश्नाकुलताओं, समस्याओं, चिंताओं ने जीवन भर मथा था उन बुद्ध-वचनों पर डॉ. उपाध्याय ने बड़े ही समर्पित भाव से जीवनभर विमर्श किया है। मेरे विचार में डॉ. उपाध्याय के ज्ञान-तप की कोई माप नहीं है वह अनंत है। भगवान तथागत ने इस संपूर्ण भव में ऐसा कुछ नहीं है जिसे देखा-जाना न हो। इसी संपूर्ण भव में मनीषी भरत सिंह उपाध्याय जीवन भर रमे रहे हैं। आज उनके द्वारा लिखा गया एक-एक शब्द हम सभी के लिए मूल्यवान है—उनका लेखन हमारे अंत:करण को। प्रकाशित करता है। मेरे एक विद्वान मित्र कमलेश जी का कहना है। कि आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी, वासुदेवशरण अग्रवाल, भरत सिंह उपाध्याय और स.ही. वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ के लेखन से हमारे ज्ञान नेत्र खुलते हैं। उनको बार-बार ध्यान से पढ़ना चाहिए। उनका जो भी मिले उसे प्रकाशित करना चाहिए। ऐसा करना ही माँ सरस्वती की। पूजा-आराधना है।
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Budh ke Viktitava Ka Lokottar Roop
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Author: BHARAT SINGH UPADHYAY
ISBN: 978-81-7309-850-5
Pages: 44
Language: HINDI
Year: 2015
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