धर्मनीति
गांधी जी धर्म और नीति को अलग नहीं मानते थे। उनका कहना था कि धर्म ही नीति है और नीति को धर्म के अनुसार होना चाहिए। इसी बात को ध्यान में रखकर इस पुस्तक का नाम ‘धर्म-नीति’ रखा गया है। इसमें चार पुस्तकों का संग्रह है: (1) नीति-धर्म (2) सर्वोदय (3) मंगल प्रभात और (4) आश्रमवासियों से। इसमें से पहली और दूसरी पुस्तक ‘नीति-धर्म और ‘सर्वोदय’ गांधी जी के भारत आने से पहले दक्षिण अफ्रीका में लिखी गई थी। तीसरी और चैथी पुस्तकें ‘मंगल प्रभात’ तथा ‘आश्रमवासियों’ से उन्होंने यरवदा जेल से सन् 1930 और 1932 के बीच पत्रों के रूप में लिखी थी। यह पुस्तक बड़ी उपयोगी तथा प्रेरणादायक है, क्योंकि वह बताती है कि नीति का मार्ग क्या है और उस पर चलकर प्रत्येक व्यक्ति को अपना जीवन कृतार्थ करना चाहिए।
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