कलवार की करतूत
यह नाटक सुप्रसिद्ध रूसी चिंतक महर्षि टाल्स्टाय के ‘फर्स्ट डिस्टिलर’ का भावानुवाद है। इसमें उन्होंने बड़े ही सुंदर और प्रभावशाली ढंग से व्यसनों, मुख्यतः शराब की हानियां बताई हैं। व्यसनों से सचमुच आदमियों की बुराइयां फलती-फूलती हैं और उनसे नरक का द्वार खुल जाता है। महात्मा गांधी ने शराब आदि के विरुद्ध स्वर ऊंचा किया था; लेकिन वह समस्या अभी तक हल नहीं हो पाई है। आशा है पाठक इस तथा लेखक की अन्य पुस्तकों का भरपूर लाभ लेंगे।
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