कृति और कृतिकार
हिंदी की प्रसिद्ध कथाकार मृदुला गर्ग ने अपनी साहित्य यात्रा के सहयात्रियों पर इन स्मृति लेखों में जीवन के अनतरंग क्षणों के संस्मरणों को बड़े ही सहज रूप में प्रस्तुत किया है। दिलचस्प बात यह है कि इन संस्मरणों का जीवंत गद्य उबाऊ, बेढंगा, कृत्रिम गद्य नहीं है। इस गद्य में एक तरह की सर्जनात्मकता का स्वाद है। ‘कृति और कृतिकार’ शीर्षक इस कृति में ग्यारह सहयात्रियों के आत्मीय संस्मरण हैं। यहाँ आप अज्ञेय, जैनेंद्र, महादेवी वर्मा, मनोहर श्याम जोशी, कृष्णा सोबती, राजेंद्र यादव, योगेश गुप्त, दिनेश द्विवेदी, संगीता गुप्ता, सुनीता जैन तथा मंजुल भगत को एक साथ पाएँगे। मृदुला गर्ग की आँखों से इन रचनाकारों को देखने-परखने का पाठकों को दिलचस्प अनुभव होगा। मृदुला गर्ग की मानसिकता में आधुनिकता और उत्तर-आधुनिकता के संस्कारों की रगड़ उनके नए प्रयोगशील मन के साथ यहाँ मिलेगी। रचनाकारों की कथ्यात्मक संवेदनात्मकता तथा फार्म की बनावट-बुनावट को पकड़ने में वे काफी सक्षम हैं। उन्हें देश-परदेश के साहित्य के अध्ययन से जिसका विस्तार से हवाला उन्होंने अपनी इस पुस्तक की भूमिका में दिया है, उससे स्पष्ट हो जाता है कि उन्हें किसी भी कलाकृति को बाहर से नहीं भीतर से उसका अंत:पाठ करने में आनंद आता है। यहाँ अनेक उपन्यासों की अंतर्यात्राओं का इतिहास पाठकों को मिलेगा। इस विश्वास के साथ मैं इस कलाकृति को हिंदी पाठक-समाज के हाथों में सौंपते हुए प्रसन्नता का अनुभव कर रहा है।
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