हिन्द स्वराज का सच
महात्मा गांधी बीसवीं शताब्दी के सबसे बड़े कुछ नायकों में से एक हैं और उनकी पुस्तक ‘हिंद स्वराज’ गांधीवाद का घोषणा-पत्र है। यह पुस्तक 1909 ई. में गुजराती में लिखी गई थी जिसे अंग्रेजों ने तत्काल प्रतिबंधित कर दिया था। इस पुस्तक के प्रकाशित होने के सौ वर्ष पूरे होने पर जिस प्रकार से बुद्धिजीवियों, राजनेताओं और संस्कृतिकर्मियों में बहस की शुरुआत हुई है उससे स्पष्ट है। कि आज भी यह पुस्तक उतनी ही प्रासंगिक है जितनी सौ वर्ष पहले थी। और ऐसा इसलिए भी क्योंकि भारत में गरीबी और अमीरी की खाई लगातार चौड़ी होती जा रही है। हमारा विकास शहरकेंद्रित रहा, विकास के क्षेत्र में गाँव लगातार हाशिए पर रहा। इसका परिणाम शहर की ओर पलायन, अव्यवस्था, भुखमरी सब हमारे सामने है। निस्संदेह यह पुस्तक भारत के मूलभूत चिंतन और विकास की धारा को भविष्य की ओर ले जानेवाली है, जिस पर चर्चा होना एक सार्थक संकेत है।
कनक तिवारी की यह पुस्तक गहराई में जाकर ‘हिंद स्वराज के सच’ को हमारे सामने रखती है। कनक तिवारी बुद्धिजीवी होने के साथ-साथ एक राजनीतिकर्मी भी हैं, यही कारण है कि बड़ी शिद्दत से इन्होंने ‘हिंद स्वराज’ की मूल संवेदना को पकड़ा है जो इसे अन्य पुस्तकों से आका करती है।
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