आपबीती
प्रस्तुत पुस्तक की लेखिका के पति जिलाधीश दुनीचंद मेहता ने काश्मीर पर कबाइलियों द्वारा आक्रमण के समय वीरतापूर्वक अपने कर्तव्य का निर्वाह किया था और मौत को गले लगाया था। उसके पश्चात लेखिका और उनके बच्चों को कितनी भीषण और मार्मिक परिस्थितियों में से गुजरना पड़ा तथा बाद में उन्हें किस प्रकार पं. जवाहरलाल नेहरू का संरक्षण प्राप्त हुआ, उसका विशद वर्णन लेखिका ने इस पुस्तक में किया है। लेखिका ने जहां मनुष्य के भीतर जागते हुए राक्षस को देखा है, वहां शैतान के भीतर शिव के दर्शन भी किए हैं और दोनों का समान भाव से वर्णन किया है। इस प्रकार यह पुस्तक काश्मीर पर कबाइलियों के आक्रमण से आरंभ होकर जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद समाप्त होती है।
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