हमारी परंपरा
भारतीय संस्कृति की पहचान उसकी बहुरैखिकता में है, जहाँ लोक और वेद, दोनों एक-दूसरे से उर्जस्वित और संपुष्टित होकर आगे बढ़ते हैं। वियोगी हरि के संपादन में सस्ता साहित्य मंडल से प्रकाशित यह पुस्तक भारतीय परंपरा की उस अविच्छिन्न धारा को समग्रता में प्रस्तुत करती है, जिसके कारण तमाम बाहरी हमलों के बीच हमारी संस्कृति और सभ्यता कायम रही। पूर्ववैदिककाल से लेकर रामायण तथा महाभारत होते हुए नवजागरणकालीन ब्रह्म समाज और आर्य समाज तक की हमारी सांस्कृतिक परंपरा के सूत्र इस पुस्तक में पिरोए गए हैं। इसके अतिरिक्त हमारे प्रमुख दर्शन चार्वाक् से लेकर शाक्त तक तथा जैन दर्शन से लेकर महावीर की वाणी तक यहाँ समाहित हैं। समग्रता में यह पुस्तक हमारी विशाल परंपरा-सागर की एक झाँकी प्रस्तुत करती है जिसमें अनेक दर्शन, मत और धर्म की नदियाँ मिलकर ऐक्य हो जाती हैं। आशा है पाठक नए कलेवर में सुसज्जित इस पुस्तक का स्वागत करेंगे।
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